<----इस केप्शन में देखिये क्या लिखा है-जिसका अर्थ निकलता है कि-- जोड़ों का दर्द आर्थराईटिस सहित जोड़ों के कई रोग का कारण होता है। ---अब समझिये, दर्द स्वयं रोगों का कारण होता है या वह सिर्फ रोग का एक लक्षण (symptom )है । यह निश्चय ही किसी अंग्रेज़ी आलेख का हिन्दी करण होगा । इन अखबार वालों को न हिन्दी आती है न अंगरेजी, न विषय का उचित ज्ञान होता है । है न अर्थ का अनर्थ । वस्तुतः -'दर्द की वज़ह से होतीं हैं ' के स्थान पर "दर्द की वज़ह होती हैं '' होना चाहिए , क्योंकि रोगों की वज़ह से दर्द होता है न कि दर्द की वज़ह से रोग।
वस्तुतः चिकित्सा आदि को शास्त्रों में गुप्त विद्याएं कहा गया है जिन का जिक्र व वर्णन सामान्य जन के लिए , इश्तिहारों में , सामान्य समाचारों , पत्र-पत्रिकाओं , विज्ञापनों में नहीं होना चाहिए , न सामान्य जनों द्वारा लिखा जाना चाहिए, जोकि आज हर पत्र -पत्रिका का सर्कुलेशन बढाने का ज़रिया बन गया है । इससे जन सामान्य में भ्रान्ति, भय,चिंता, (एप्रीहेंशन ) फैलता है और चिकित्सा व्यवसाय में भी दोहन प्रक्रिया का प्रारम्भ । यह सब विशेषग्य पत्रिकाओं में व विशेषज्ञों द्वारा ही लिखा जाना चाहिए, ताकि जन सामान्य को सिर्फ स्वास्थ्य के बारे में ज्ञान रखने के लिए समझाया जाय ।
इसी तरह का एक और उदाहरण--- आजकल हर समाचार पत्र, पत्रिका, टी वी पर ज्योतिषियों के कथनों -भविष्य वाणियों ,ज्योतिष द्वारा विभिन्न उपाय-उपचारों की बाढ़ सी आगई है जो निश्चय ही बाज़ार, रेटिंग , कमाई, व सिर्कुलेशन के लिए है और जन सामान्य के अंध विश्वास, भ्रम, भय , चिंता के दोहन का साज है , यह सब बंद होना चाहिए ।
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- एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त
बुधवार, 20 अक्तूबर 2010
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