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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

गुरुवार, 7 अक्टूबर 2010

साहित्य- समाज में कथ्यों -तथ्यों की अनदेखी.....


---अभी मेरी नज़र एक ब्लोग पर ,एक कहानी पर पडी , आप भी सुनिये---

""उस दिन अपनी एक डॉक्टर मित्र संजना के यहाँ किसी काम से गयी थी ! संजना अपने क्लीनिक में मरीजों को देख रही थी ! मुझे हाथ के संकेत से अपने पास ही बैठा लिया ! सामने की दोनों कुर्सियों पर एक अति क्षीणकाय और जर्जर लगभग ८० वर्ष के आस पास की वृद्ध महिला और एक नौजवान लड़की, लगभग १६ -१७ साल की, बैठी हुईं थीं ! वृद्धा की आँखों पर मोटा चश्मा चढ़ा हुआ था ! कदाचित वह अपनी पोती के साथ अपनी किसी तकलीफ के निदान के लिये संजना के पास आई थीं ! संजना ने उनकी सारी बातें ध्यान से सुनीं और प्रिस्क्रिप्शन लिखने के लिये पेन उठाया ! आगे का वार्तालाप जो हुआ उसे आप भी सुनिए –
संजना - अम्मा जी अपना नाम बताइये !
पोती - आंटी ज़रा जोर से बोलिए दादी ऊँचा सुनती हैं !
संजना - अम्मा जी आपका नाम क्या है ?
पोती - दादी आंटी आपका नाम पूछ रही हैं !
दादी - नाम ? मेरो नाम का है ? मोए तो खुद ना पतो !
संजना – तुम ही बता दो उन्हें याद नहीं आ रहा है तो !
पोती – आंटी दादी का नाम तो मुझे भी नहीं पता ! हम तो बस दादी ही बुलाते हैं ! ""


------मैने अपने ६० वर्ष में गावं से लेकर महानगर तक आज तक कोई एसी ब्रद्ध , युवा, प्रौढ महिला नहीं देखी जो अपना नाम नही जानती हो, अपितु इस स्थिति में वे खुशी-खुशी अपना नाम बताती है कि चलो किसी ने तो हमारा नाम पूछा । जो भी ८० वर्ष का व्यक्ति होता है वह अपना नाम भी ’ याददास्त कमजोरी "; जो विभिन्न कारणों से होती है; के कारण भूल सकता है, या बेटे-बेटियों के मां- बाप होने पर कोई भी छोटा-बडा उनका नाम नहीं लेता। यह सिर्फ़ एक कहानी है पर क्यों ?
-----अन्य बात यह है कि आज की युवती ( आन्टी कहने वाली पोती-चाहे ग्रामीण ही सही इतनी अपढ/मूर्ख नहीं होती ) भी इतनी असंवेदन शील ,अन कन्सेर्न्ड व अग्यानी है कि कभी अपनी दादी का नाम ग्यात करने की आवश्यकता नहीं हुई।
----और " व्हाट इज़ इन द नेम"--- पति द्वारा नाम पुकारा जाकर आज कल की स्त्रियां क्या हासिल करती हैं, नाम महत्वपूर्ण है या प्रेम , ज़िन्दगी , स्त्रियों का नाम पुरुषों ( घर की बडी स्त्रियों द्वारा भी ) न लेने का भाव यह है कि हर कोई एरा-गेरा उनका नाम जानकर अनुचित क्रिया-कलाप न कर पाये ।बेटियों का नाम भी वास्तविक नाम कौन लेता था, छोटा या प्यार का नाम पुकारा जाता था। आज भी काफ़ी युवक- प्रेमिका व पत्नी का नाम की बजाय -डार्लिन्ग आदि कहना पसन्द करते हैं।

---साहित्य में आजकल यह कमी काफ़ी खल रही है कि हम सिर्फ़ कुछ कहने के लिये , कुछ सत्यों व वास्तविक तथ्यों को अनदेखा कर रहे हैं।

1 टिप्पणी:

ZEAL ने कहा…

दुखद है ये। ...पहले लोग अपना जन्म दिन नहीं जानते थे---अब नाम भी नहीं ।