<-----बड़ा शोर मचाया जारहा है भारत की स्थिति में सुधार का । दिए गए समाचार के अनुसार यदि स्वतन्त्रता के छ : दशक बाद भी भारत, बंगलादेश, लंका, पाकिस्तान,नेपाल से भी स्वास्थ्य, शिक्षा व लिंगभेद में पीछे है तो फिर सुधारकिस में व किस बात का , प्रगति किस बात की ?...आमदनी में, खेळ में ,फैशन में , सिनेमा, टी वी, मोबाइल व अन्य आयातित विचार ,संस्कृति , उपभोग के उपकरणों -बस्तुओं, प्रसाधनों के उपभोग-उपयोग- प्रयोग में, जो आभासी है , नक़ल पर आधारित, व विदेशी सहायता पर आधारित है ; खेळ भ्रष्टाचार , सांस्कृतिक भ्रष्टाचार तथा हर क्षेत्र में महा- भ्रष्टाचार में |
----शिक्षा, स्वास्थ्य, चरित्र व लिंगभेद ही तो किसी समाज के सामाजिक स्थिति के वास्तविक दर्पण होते हैं , जहां --हम कहाँ हैं ---आज दीपावली के , अग्निशिखा के , अग्ने ( विद्वानों , गुणीजनों के व्यवहार ---अग्ने ने सुपथा राये...) के अंतर्मंथन के पर्व पर हम सब सोचें -विचारें, एवं कुछ उपाय व कर्तव्यों पर पुनर्विचार व मंथन करें ।
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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...
- shyam gupta
- Lucknow, UP, India
- एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त
शुक्रवार, 5 नवंबर 2010
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2 टिप्पणियां:
हिन्दु, मुस्लिम, सिख, ईसाई
जब सब हैं हम भाई-भाई
तो फिर काहे करते हैं लड़ाई
दीवाली है सबके लिए खुशिया लाई
आओ सब मिलकर खाए मिठाई
और भेद-भाव की मिटाए खाई
हर कालाबाजारी, भ्रष्टाचारी के लिये ही अधिक आमोद-आनन्द-दायक होती है..गरीब को तो सब दिन एक से..
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