-----रतन टाटा का कहना है कि उनसे भी १५ करोड़ की रिश्वत माँगी गयी थी , तो भैया जी आप अब तक क्यों चुप रहे ? अब इतने जमाने बाद आप कह रहे हैं जब इसका न कोई सबूत मिलेगा न कोई अर्थ होगा , न कोई ठोस कार्यवाही । इसका भी क्या सबूत होगा कि आपने रिश्वत देना स्वीकार किया या नहीं, रिश्वत माँगी गयी या अपनी सुविधानुसार प्रस्तावित की गयी, आप तो बिज़नेसमेन हैं आपके मन माफिक लाभ का जुगाड़ न होते देख आपने प्रस्ताव टाल दिया। अब कहने का अर्थ --आप पर स्वयं पर आंच न आये और--- ' हर्र लगे न फिटकरी रंग चोखा आजाय'....आखिर समर्थ लोग ही भ्रष्टाचारियों , रिश्वतखोरों आदि के विरुद्ध उचित समय पर कार्यवाही नहीं करेंगे तो आम आदमी की क्या मजाल । परन्तु वही बात है न कि ' बिल्ली के गले घंटी कौन बांधे?' हम तो उसके साथ मलाई खाते रहें और घंटी दूसरे लोग बांधें। एवं " मैं तो चाहता हूँ पर वो ही नहीं मानता"...." वो भ्रष्ट है'...आदि आदि.... 'जागो ग्राहक जागो '......सामान्य जन तो जागता रहे और समर्थ बड़े लोग ...रिश्वत, भ्रष्टाचार, सुख-सुविधाओं की मदिरा के नशे में सोते रहें।
----ईमानदारी उसमें होती है कि उसी समय बात को खोला जाता, प्रचार किया जाता ; पत्र है, पत्रकार हैं, मीडिया है , शिकायत ब्यूरो हैं , सामाजिक संस्थाएं हैं ?? परन्तु आप मौन रहे---मौनं स्वीकृति लक्षणम" अपितु रिश्वत के सन्दर्भ में तो यह अपराधपूर्ण कृत्य है । राजस्थान पत्रिका ने क्या खूब 'पोलमपोल' लिखा है---
' मन-मूनी बावा बन्या, दिख्यो न भ्रष्टाचार।
भली कही छै मौन को,मतलब छै स्वीकार॥ "
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- एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त
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