कौन सी राह ???? एक यक्ष प्रश्न .....
राजस्थान पत्रिका के २२.११.१० अंक में किरण बेदी का आलेख है ' राह दिखाने की कोशिश'---जिसमें बंचित, गरीब बस्तियों , निशुल्क स्कूल में पढ़ने वाले युवाओं, किशोरियों को अच्छे जीवन यापन की प्रेरणा देता हुआ एक 'करियर काउंसलिंग' दी गयी। ---अब आप देखिये किस तरह से एक अच्छे उद्देश्य को भी कबाड़ा किया जाता हैअर्धज्ञानी व अंग्रेज़ी चश्मा लगाए , अंग्रेज़ी दां लोगों द्वारा ।
---"करियर काउंसलिंग की गयी" ज्ञान प्रदायक सभा नहीं, ---जूते चप्पल कैसे रखें आदि अंग्रेज़ी-भाव में बताया गया । ---बच्चियों ने खुद " एंकरिंग" की ,संचालन नहीं । --फिल्म "एवरी डे" यानी अंग्रेज़ी भाव में दिखाई गयी । अन्य विषय थे---कम्प्युटर वर्ग, अंग्रेज़ी माहौल की सजीवता बनाए रखना,सलून, ब्यूटी पार्लर, फेशन डिजायनिंग |
---सिखाया गया-
१.-रोज़ अंग्रेज़ी का एक शब्द सीखें तो वर्ष में ३६५ शब्द व वाक्य सीखे जा सकते हैं, हिन्दी की कोई आवश्यकता नहीं ।
२-सफल करियर के लिए ४ बातें जरूरी हैं- KASH. -जिसका अर्थ है --नालेज ,एटीच्यूड, स्किल्स व हेबिट अर्थात अंग्रेज़ी में सोचने से ही करियर बनेगा ।
३- सबसे बड़ी उपलब्धि है--कृतज्ञता ज्ञापन के लिए .."थेंक्यू" कहना ---धन्यवाद नहीं।
४ एसे 'कम्यूनिटी कालेजों 'की जरूरत है -सामाजिक संस्थाओं की नहीं।
-----अब बताइये इस कौन्सेलिंग से यही समझेंगे हमारे अपरिपक्व मष्तिष्क वाले युवा/किशोरियां कि एक मात्र राह अंग्रेज़ी को , अंग्रेज़ी ज्ञान को, भाव को अपनाने से ही हमारी व भारत की तरक्की होगी।
----क्या ये आगे आने वाली पीढी के मन मष्तिष्क में स्वभाषा , स्वदेश, स्व-समाज,स्व-ज्ञान,स्व-शास्त्र व स्वयं के विरोध का ज़हर नहीं घोला जारहा एसे अर्ध-ज्ञानी लोगों द्वारा|
इससे यह प्रतीत होता है कि , किरण बेदी एक पुलिस-नौकरशाह हैं , वे अंगरेजी ज्ञान में माहिर हैं , भारतीय -समाज , शास्त्रीय भाव, भारतीयता भाव का वास्तविक ज्ञान नहीं है , वे अपने कुछ लीक से हटकर कृत्यों ( जो प्रायः प्रिसिद्धि पाने हेतु होते हैं ) से प्रसिद्ध होकर समाज सेविका बन गईं , पर वे कोई समाज शास्त्री नहीं हैं । अन्यथा ये सारे कार्यक्रम व संचालन आदि स्व-भाषा में ही होना चाहिए था। जिसकी इस देश को अत्यंत आवश्यकता है।
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- Lucknow, UP, India
- एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त
सोमवार, 22 नवंबर 2010
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1 टिप्पणी:
bahut achcha likha cheen ko dekh kar bhee hamne koi sabak naheen liya
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