हेमंत...
आई फिर प्रिय शीत सुहानी,
घिर घिर आये प्रीति अजानी।तन मन काँपे शीत पवन से,
उभरे कोई , प्रीति कहानी । ...आई फिर से....॥
अपने अंतर्मन के तम को -
दूर करो, प्रिय बचन सुनादो। मेरे मन की फुलवारी में,
कुछ पल बैठो ,हिय हुलसादो।
मन के सारे भेद भुलाकर,
प्रीति प्रेम के बोल सुनादो ।
याद करो वह प्रेम कहानी,
याद करो वह शाम सुहानी । ....आई फिर से.... ॥
शीत पवन तन मन सिहराए,
पीर पुरानी . मन- लहराए।मन में जगे प्रीति की इच्छा ,
ऐसी गर्म बयार बहा दो ।
आस और विश्वास भरे पल,
बीतें संग संग हिल मिल कर। शिशिर घात से जड़ तन मन को ,
प्रेम अगन से तुम सहला दो।
मिल जुल कोई गीत सजाएं,
इक दूजे में हम खोजायें ।मन महकाए प्रीति सुजानी,
नूतन-नित चिर प्रेम कहानी। ....आई फिर से.... ॥
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