और वर्ष की पहली नज़्म ---डा श्याम गुप्त--
कदम बढ़ते रहें ....
न कोइ शिकवा न शिकायत है ज़िंदगी तुझसे |
क्या मिला क्या न मिला न कोइ पूछे हमसे |
जो मिला अच्छा मिला रब की नियामत तो मिली,
बीता ये साल नए वर्ष की मंजिल तो मिली।
हम दुआ करते हैं ,सब ये दुआ करते रहें,
नई मंजिल पे सदा कदम ये बढ़ते रहें।
ज़िंदगी रोज़ नए रंग में ढलती जाए,
ज़िंदगी रोज़ नए गुल बनी खिलती जाए।
श्याम' आये न मेरे देश पे संकट कोइ,
मिट ही जाए जो इसे आँख दिखाए कोइ।
और क्या मांगूं भला ज़िंदगी अब तुझसे ,
जो भी जैसा भी मिले,अच्छा मिले सब तुझसे ॥
न कोइ शिकवा न शिकायत है ज़िंदगी तुझसे |
क्या मिला क्या न मिला न कोइ पूछे हमसे |
जो मिला अच्छा मिला रब की नियामत तो मिली,
बीता ये साल नए वर्ष की मंजिल तो मिली।
हम दुआ करते हैं ,सब ये दुआ करते रहें,
नई मंजिल पे सदा कदम ये बढ़ते रहें।
ज़िंदगी रोज़ नए रंग में ढलती जाए,
ज़िंदगी रोज़ नए गुल बनी खिलती जाए।
श्याम' आये न मेरे देश पे संकट कोइ,
मिट ही जाए जो इसे आँख दिखाए कोइ।
और क्या मांगूं भला ज़िंदगी अब तुझसे ,
जो भी जैसा भी मिले,अच्छा मिले सब तुझसे ॥
8 टिप्पणियां:
ज़िंदगी रोज़ नए रंग में ढलती जाए,
ज़िंदगी रोज़ नए गुल बनी खिलती जाए।
कितने सुन्दर भाव हैं...वाह..बधाई
नीरज
जीवन के कदम यूँ ही बढ़ते रहें।
धन्यवाद नीरज जी..
....ज़िन्दगी गीत है , ज़िन्दगी मीत है....
धन्यवाद प्रवीण जी,बिज़ी सिड्यूल से टाइम कैसे निकालते हो...यही ज़िन्दगी है ..
ज़िंदगी रोज़ नए रंग में ढलती जाए,
ज़िंदगी रोज़ नए गुल बनी खिलती जाए....
बेहतरीन पंक्तियाँ ।
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नूतन वर्ष की शुभकामनाएं-----दिव्या जी...
जीवन तो बस इक कविता है,
कवि भरता है इसमें जीवन ।
सारा जग यदि कवि बन जाये,
पल पल मुस्काये ये जीवन।
सही कहा आपने .....सारा जग यदि कवि बन जाये,
पल पल मुस्काये ये जीवन......
मानव बनना भाग्य है,
कवि बनना सौभाग्य।
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