....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
तटस्थता भी अन्य अन्य मूल भाव गुणों की भांति नकारात्मक व गुणात्मक होती है | दो मूल क्रियाएं , वृत्तियों, न्याय, मनुष्यों, आचरण आदि में जब निर्णय की आवश्यकता होती है तब तटस्थता अनिवार्य गुणात्मक भाव होती है, जो न्याय व निष्पक्षता का भाव होती है | वहीं सामाजिक, व्यक्तिगत , राजनैतिक व आचरण गत अच्छाई -बुराई, में तटस्थता एक दुर्गुण ही होती है | "कोऊ नृप होय हमें का हानी ..." वाली प्रवृत्ति होती है , मंथरा प्रवृत्ति...दासी प्रवृत्ति.....|
" सचिव वैद्य गुरु तीन जब, प्रिय बोलहिं भय आस |
राज्य,धर्म तन तीनि कर, होई बेगिही नाश ||"
आज हर क्षेत्र में यही वृत्ति घर कर गयी है और यही समस्त समष्टि व व्यष्टि में व्याप्त अनाचरण का मूल कारण है |
इतिहास में पितामह भीष्म का नाम बड़े श्रृद्धा व आदर से लिया जाता है | परन्तु आज समय उन पर भी उंगली उठारहा है व उठाता रहेगा | उनकी तटस्थता महाभारत की विभीषिका का कारण बनी | यद्यपि हम नहीं जान सकते की उस समय क्या तत्कालीन वस्तु-स्थिति रही होगी पर यही सोचा जायगा की यदि वे भी कृष्ण की भांति समय रहते न्याय व सत्य का पक्ष लेते तो शायद परिणति कुछ और हो सकती थी |
आज हमारे प्रधानमंत्री तक को विभिन्न घोटालों का पता नहीं था, तमाम मंत्रीगण, नेता, राजनीतिग्य आँख मूँद कर बैठे रहे , तटस्थ भाव से ( या स-अर्थ भाव, स्वहित भाव ) सब होते देखते रहे व देखते रहते हैं | वे अपने दायित्व से मुकर नहीं सकते |
शासन के पश्चात प्रशासन होता है | हमारे प्रशासक ...अधिकारी ,सरकारी कर्मचारी, आदि क्यों उचित परामर्श, सत्य का साथ नहीं दे सके क्यों नेताओं मंत्रियों के सत्यासत्य आचरण ,आदेशों का पालन करते रहे , और पुलिस-सेवा, सीबी आई आदि गुप्तचर सेवायें क्या कर रहीं थीं जो आज घुटाले अनावरण होने पर लम्बे लम्बे छपे आदि के कृतित्व में रत है जिनकी स्वयं की जिम्मेदारी इन्हें यथा समय रोकना होता है फाइलों को लम्बे समय तक रोके रहने के आदी बाबू लोग क्यों नहीं सही व नियमानुसार ड्राफ्टिंग करके अपना दायित्व निभाते, क्यों अफसरों के गलत आदेशों पर टीका-टिप्पणी नहीं कर पाए |
व्यापारी वर्ग जो समाज की आर्थिक रीढ़ होते हैं वे भी अपने स्वार्थ वश ..हमें क्या करना हमें तो चार पैसे कमाने हैं जी ...की तटस्थ व स्वार्थपरक मानसिकता से ग्रस्त हैं , वे भी इस अनाचरण में सम्मिलित तो हैं ही, जो दृश्य रूप में नहीं हैं वे भी दायित्व से नहीं बच सकते |
हम सब नागरिक, देश वासी, सामान्यजन अपने अपने स्वार्थ में रत उचित समय पर आवाज उठाने में असमर्थ रहे वह भी वही तटस्थता भाव के करण - की मैं क्यों पचड़े में पडूँ, मैं तो समझता हूँ पर दूसरे नहीं करते ..क्या करें...| क्या हम दोषी नहीं हैं |
और समाज का चौथा खम्बा मीडिया ???? जो बड़े जोर शोर से अपनी कथा कहता रहता है तथा अब और भी जोर शोर से वह क्यों न सिर्फ तटस्थ रहा अपितु उसमें सम्मिलित भी हुआ ..क्या कहा जाय |
" हर शाख पे उल्लू बैठा है अंजामे गुलिश्तां वही होगा जो होरहा है .."......जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनके भी अपराध .....
6 टिप्पणियां:
सबका मन उद्वेलित करता लेख।
जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनके भी अपराध
bahut sundar bichar ki abhibyakti.sir very good.lekh.
धन्यवाद, प्रवीण जी--- आपका मन उद्वेलित हुआ---यदि हम सभी का मन इसी भांति उद्वेलित हो और सोचें क्या नहीं हो सकता....मन की ही तो बात है बन्दे..
--मन था उठालिया गोवर्धन,
मन था सागर सेतु बन गया ॥
धन्यवाद शा,
लखनऊ ब्लोगर्स अशो. पर मेरा श्रिष्टि-महाकाव्य व आल इन्डिया ब्लोग. अशो. पर मेरा ..शूर्पणखा काव्य-उपन्यास ....भी देखें...
तटस्थता से बड़ा कोई जुर्म नहीं !
सही कहा दिव्याजी---
लखनऊ ब्लोगर्स अशो. पर मेरा श्रिष्टि-महाकाव्य व आल इन्डिया ब्लोग. अशो. पर मेरा ..शूर्पणखा काव्य-उपन्यास ....भी देखें...
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