....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
ऋतेन गुप्त ऋतुभिश्च सर्वेभूतेन गुप्तो भव्येन चाहम |
मा मा प्रापत पाप्मा मोत मृत्युरंतर्दधेहं सलिलेन वाच:|| -------अथर्व वेद १७/१/२९ ....
---- सत्यकर्म और धर्माचरण से ही जीवन( संसार ) सुरक्षित रहता है | हम समस्त विश्व( के जड़- जंगम, प्राणियों) की सुरक्षा की इच्छा करते हैं , सुरक्षा चाहते हैं, सुरक्षा की इच्छा करें | अत: हम सदैव निष्पाप व यशस्वी बनें ( अयश व पाप को प्राप्त न हों, अनुचित कर्म न करें ) हम सदैव (मृत्युपर्यंत ) ही जल की भाँति निर्मल मन से कार्य करते हुए उच्च ज्ञान प्राप्त करते रहें |
1 टिप्पणी:
बहुत ही सुन्दर वचन।
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