....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
कहा जाता है कि न्याय की देवी की आंखों पर पट्टी बंधी होती है , परन्तु न्यायाधीश व न्यायालय के अन्य कर्मचारी तो मनुष्य ही होते हैं और उनकी आँखें खुली होती हैं | उनमें भी मानवीय गुणावगुण होते ही हैं | सामान्य जन में यह निश्चित धारणा है की अदालतों में कोई काम पैसे दिए बिना नहीं होता, और वह भी खुले आम , सामान्य दफ्तरों की भाँति चोरी चोरी नहीं | अब यह धारणा क्यों व कैसे बनी ? सभी जानते हैं |
न्याय एक पवित्र व्यापार है व न्यायालय पवित्र स्थान, वे शासन व राजनीति से स्वतंत्र इकाई मानी जाती है , परन्तु आज के मानवीय आचरण के गिरावट के समय में यह व्यवस्था भी कैसे शुद्ध रह सकती है | न्याय के समाज और व्यक्ति पर दूरगामी व सर्वतोमुखी प्रभाव होते हैं | इसी के चलते जन-लोकपाल बिल में न्यायालयों को भी लाने की बात होरही है | मेरे विचार में कुछ मूल बातें एसी हैं जो इनके प्रति जनता में भय का वातावरण बनाती हैं और भ्रष्टाचार के लिए भाव भूमि...
१-न्यायालय की अवमानना---- न्यायालय के विरुद्ध कुछ भी कथन, टिप्पणी आदि अवमानना मान लिया जाता है, जो नागरिक के अधिकार का हरण है ...अवमानना न्याय की होती है.....न्यायालय व न्यायाधीश की नहीं ---अवमानना न्याय की नहीं होनी चाहिए ..यदि कोई न्याय द्वारा पारित आदेशों का पालन नहीं करे तो वह अवमानना हो सकती है परन्तु टिप्पणी व राय प्रस्तुत करना नहीं , न्यायालय में न्याय-आसन पर उपस्थित न्यायाधीश के न्याय के विरुद्ध कथन अवमानना है परन्तु अन्य स्थान पर उनके विरुद्ध कोई कथन या व्यक्तिगत कथन आदि न्याय के नहीं, सामान्य नागरिक के सन्दर्भ में माना जाना चाहिये | होता यह है क़ि नागरिक का कुछ भी बोलना अवमानना मान लिया जाता है और जनता में व्याप्त भय ..भ्रष्टाचार का कारण बनता है |
२- स्वयं संज्ञान लेना--- होता यह है क़ि प्रायः तमाम व्यक्तिगत कारणों से न्यायकर्ता, स्वयं संज्ञान के अधिकार का प्रयोग करके किसी को भी वारंट तक भेज देते हैं जो भ्रष्टाचार का कारक है | अत्यंत आवश्यक समाज व जन-जीवन से सम्बंधित कलापों के अन्यथा यह अधिकार नहीं होना चाहिए .... इस अवस्था में वे स्वयं न्यायकर्ता न होकर, सामान्य व्यक्ति की भाँति नियमानुसार अन्य अदालत में अपना वाद पेश करें |
३- कहीं भी न्यायालय -- न्याय सिर्फ न्याय-आसन पर ही होना चाहिये , कहीं भी या घर पर नहीं , नियमित रूप से पूरे समय चेंबर में न बैठना भी एक बहुत बड़ी असुविधा है न्याय के लिए | और --"न्याय में देरी का अर्थ न्याय न मिलना "..जैसे जुमले इसीलिये बन जाते हैं |
३- विशेष अधिकार -- न्याय कर्ताओं को सुविधा आदि के लिए प्रशासनिक अधिकारियों की भाँति व्यवहार नहीं करना चाहिए , विशेष अधिकार भी अनाधिकार चेष्टा को प्रश्रय देते हैं |
7 टिप्पणियां:
अच्छे विचार प्रस्तुत किये हैं आपने.विचार-मंथन होते ही रहना चाहिये.
बहुत बहुत आभार आपका.
विचारणीय प्रस्तुति।
क्या आप सच्चे हिन्दू हैं .... ? क्या आपके अन्दर प्रभु श्री राम का चरित्र और भगवान श्री कृष्ण जैसा प्रेम है .... ? हिन्दू धर्म पर न्योछावर होने को दिल करता है..? सच लिखने की ताकत है...? महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवा जी, स्वामी विवेकानंद, शहीद भगत सिंह, मंगल पांडे, चंद्रशेखर आजाद जैसे भारत पुत्रों को हिन्दू धर्म की शान समझते हैं, भगवान शिव के तांडव को धारण करते हैं, जरूरत पड़ने पर कृष्ण का सुदर्शन चक्र उठा सकते हैं, भगवान राम की तरह धर्म की रक्षा करने के लिए दुष्टों का नरसंहार कर सकते हैं, भारतीय संस्कृति का सम्मान करने वाले हिन्दू हैं. तो फिर यह साझा ब्लॉग आपका ही है. एक बार इस ब्लॉग पर अवश्य आयें. जय श्री राम
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जरा सोचिये उपरोक्त सारी बाते आपका दिल स्वीकार करता है. पर हिन्दू खुद को हिन्दू कहने में डरता है, वह सोचता है की कही उसके ऊपर सांप्रदायिक होने का आरोप न लग जाय, जबकि हिन्दू धर्म है संप्रदाय नहीं. हमारे इसी डर ने हमें कमजोर बनाया है.
जरा सोचे -- कश्मीर में हमारी माँ बहनों की अस्मिता लूटी जा रही है. हम चुप हैं.
रामजन्मभूमि पर हमले हो रहे हैं........ हम चुप हैं.
हमारे धार्मिक स्थल खतरे में हैं और हम चुप हैं..
इस्लाम के नाम पर मानवता का खून बह रहा है . हम चुप हैं.
हम आतंकी खतरे के साये में हैं..... हम चुप हैं..
मुस्लिम बस्तियों में हिन्दू सुरक्षित नहीं हैं. हम चुप हैं..
दुर्गापूजा, दशहरा, गणेश पूजा सहित सभी धार्मिक जुलुस, त्यौहार आतंक के साये में मनाये जाते हैं और हम चुप है.
क्या यह कायरता हमें कमजोर नहीं कर रही है.
जागिये, नहीं तो जिस तरह दिन-प्रतिदिन अपने ही देश में हम पराये होते जा रहे हैं. एक दिन भारत माता फिर बाबर और लादेन के इस्लाम की चंगुल में होगी.
हमारी कायरता भरी धर्मनिरपेक्षता भारत को इस्लामिक राष्ट्र बना देगी.
धर्म जोड़ता है, आप भी जुड़िये.
भारतीय संस्कृति की आन-बान और शान और हिंदुत्व की रक्षा के लिए अपने अन्दर के डर को निकालिए.
आईये हमारे इस महा अभियान में कंधे से कन्धा मिलाकर दिखा दीजिये, हम भारत माँ के सच्चे सपूत हैं.. हम राम के आदर्शों का पालन करते हैं. गीता के उपदेश को मानते हैं.
स्वामी विवेकानंद ने विदेश में जाकर अकेले हिंदुत्व का डंका बजा दिया... हम भी तो हिन्दू हैं.
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आईये " हल्ला बोल" के समर्थक बनकर अपनी आवाज़ बुलंद कीजिये...
अपने लेख को हिन्दुओ की आवाज़ बांयें.
इस ब्लॉग के लेखक बनने के लिए. हमें इ-मेल करें.
हमारा पता है.... hindukiawaz@gmail.com
नम्र निवेदन --- यदि आप धर्मनिरपेक्ष हिन्दू बनते है तो यहाँ पर आकर अपना समय बर्बाद न करें. पर चन्द शब्दों में हमें यह जरूर बताएं की सेकुलर और धर्मनिरपेक्षता का मतलब आपको पता है. यदि पता न हो तो हमसे पूछ सकते हैं. हम आपकी सभी शंकाओ का समाधान करेंगे.
इसको अवश्य पढ़े....
इनका अपराध सिर्फ इतना था की ये हिन्दू थे
बहुत सुन्दर आप का ब्लॉग रोचक ज्ञान वर्धक भ्रष्टाचार के कारक व् अन्य , आप के दार्शनिक विचार देख हम भी आप की टिप्पणी के साथ यहाँ पहुँच गए अब पढ़ते सुनते इसका लुत्फ़ लेते रहेंगे -एक शल्य चिकित्सक और उसका समय देना उसका समर्पण काबिले तारीफ है तभी तो अख्तर खान अकेला भाई ने लेख ही लिख डाला -अपना सुझाव व् समर्थन देने की कृपा करियेगा जब मन आये
आदरणीय डॉ श्याम जी नमस्कार -बहुत सुन्दर और दार्शनिक विचार आप के हमें ये स्वीकार्य है -लेकिन रचना किस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए और क्या आह्वान करती हुयी लिखी गयी है उस पर भी कृपया धयान दें या शायद आप ने ध्यान दिया होगा अगर उन लोगों को आप का गीता का ये उपदेश दें तो शायद बात ही नहीं बने -जो मै कहना करना चाह रहा हूँ इस घडी में क्या वो सन्देश उन पर कुछ काम करेगा शायद नहीं ..
और एक बात अगर सब नश्वर नहीं है तो क्यों आज सारी दुनिया चिल्लाती जा रही है पानी बचाओ , बिजली बचाओ , ये करो वो करो ,लोग घर छोड़ भाग रहे हैं प्यासे मर रहे है बहुत सी बाते हैं जिन्हें कभी बाद में
धन्यवाद आप का
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५
बहुत सुन्दर आप का ब्लॉग रोचक ज्ञान वर्धक भ्रष्टाचार के कारक व् अन्य , आप के दार्शनिक विचार देख हम भी आप की टिप्पणी के साथ यहाँ पहुँच गए अब पढ़ते सुनते इसका लुत्फ़ लेते रहेंगे -एक शल्य चिकित्सक और उसका समय देना उसका समर्पण काबिले तारीफ है तभी तो अख्तर खान अकेला भाई ने लेख ही लिख डाला -अपना सुझाव व् समर्थन देने की कृपा करियेगा जब मन आये
आदरणीय डॉ श्याम जी नमस्कार -बहुत सुन्दर और दार्शनिक विचार आप के हमें ये स्वीकार्य है -लेकिन रचना किस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए और क्या आह्वान करती हुयी लिखी गयी है उस पर भी कृपया धयान दें या शायद आप ने ध्यान दिया होगा अगर उन लोगों को आप का गीता का ये उपदेश दें तो शायद बात ही नहीं बने -जो मै कहना करना चाह रहा हूँ इस घडी में क्या वो सन्देश उन पर कुछ काम करेगा शायद नहीं ..
और एक बात अगर सब नश्वर नहीं है तो क्यों आज सारी दुनिया चिल्लाती जा रही है पानी बचाओ , बिजली बचाओ , ये करो वो करो ,लोग घर छोड़ भाग रहे हैं प्यासे मर रहे है बहुत सी बाते हैं जिन्हें कभी बाद में
धन्यवाद आप का
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५
विचारोत्तेजक आलेख.
बधाई स्वीकारें
सर बहुत ही सुन्दर सुझाव !
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