....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
इक शब्द बोलने में वो यारो बड़े मगरूर |
क्या पढेंगे ख़त को मेरे कह दीजिये हुज़ूर |
दिल तोड़ना ही सदा जिनकी दास्ताने -दिल,
,दिल जोड़ने की देखिये, नाजो-अदा -गुरूर |
वो समझते हैं भला कब हुश्न का एसा भरम ,
खुश हैं वो ख्वावो-ख्याल में, 'वो हैं बड़े मशहूर' |
जिसने आँखों से न पी हो,वो भला समझे भी क्या ,
प्यास में कैसा नशा है, इश्क में कैसा शुरूर |
चाहत है दिल को तोड़ने की, तोड़ दीजिये,
श्याम तो इश्के-भरम में डूब के मजबूर |।
2 टिप्पणियां:
इक शब्द बोलने में वो यारो बड़े मगरूर |
क्या पढेंगे ख़त को मेरे कह दीजिये हुज़ूर |
बड़ा सटीक कटाक्ष।
धन्यवाद पन्डे जी --सही पहुचे हुज़ूर....
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