....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
राधा जी के अंग को परसें पुष्प लजायं ,
भाव विह्वल हो नमन कर सादर पग बिछ जायं |
सादर पग बिछ जायं,लखि चरण शोभा न्यारी ,
धन्य धन्य हैं पुष्प, श्याम लीला बलिहारी |
पुष्पों की वर्षा करें , राधा पर घन-श्याम,
छवि कदम्ब के बृक्ष की,सुलसित ललित ललाम |
सुलसित ललित ललाम, गोप गोपी हरषायें,
ललिता कुसुमा राधाजी, मन अति सुख पायें |
विह्वल भाव वश, देव दनुज किन्नर नर नागर ,
करें पुष्प वर्षा राधा पर नटवर नागर ||
राधा जी के अंग को परसें पुष्प लजायं ,
भाव विह्वल हो नमन कर सादर पग बिछ जायं |
सादर पग बिछ जायं,लखि चरण शोभा न्यारी ,
धन्य धन्य हैं पुष्प, श्याम लीला बलिहारी |
तरु कदंब हरषायं, देखि गुन कान्हा जी के ,
क्रीडा करते श्याम, श्याम’ संग राधा जी के ॥
4 टिप्पणियां:
शब्द लालित्य के साथ कुण्डलियाँ जैसे युग में खरा सोना मिल गया.धन्य है आपकी लेखनी.
चहुँ ओर प्रकृति प्रसन्न है।
सुन्दर कथन पांडे जी....पुष्प वर्षा से प्रकृति कैसे न प्रसन्न हो....
धन्यवाद अरुण जी...सार्वकालिक योगीराज कृष्ण का नाम लेते ही दुनिया धन्य होजाती है......आभार...
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