....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
विविध रूप बहु भाव युत , असुर किये संहार ,
यह लीला करि श्याम ने, समझाया यह सार |
समझाया यह सार, नगर गृह वर्ग ग्राम में ,
अनाचार पल्लवित, प्रकृति शासन जन मन में |
मिटे अनैतिकता, अक्रियता, फ़ैली बहु विधि ,
जनजनमन हरषाय,विकास नित होय विविध-विधि ||
10 टिप्पणियां:
सुंदर दोहे हैं
विनाशाय च दुष्कृताम्।
धन्यवाद प्रवीण जी --सही कहा---कन्हैया जी बचपन से ही इस काम में लग गए थे.... घोषणा तो आधा काम कर लेने के बाद की...तभी तो वे कृष्ण हैं...योगीराज हैं..भगवान हैं ...
धन्यवाद अरुणेश जी...आभार...
---वास्तव में यह कुंडली छंद है....जो मिश्र छंद होता है...पहले एक दोहा( दो पदों का ) और + एक रोला ( चार पदों का )---
मिटे अनैतिकता, अक्रियता, फ़ैली बहु विधि,जनजनमन हरषाय,विकास नित होय विविध-विधि ||
प्रासंगिक कुंडली छंद के लिए हार्दिक बधाई।
धन्यवाद ..ड़ा शरद जी....
मिटे अनैतिकता, अक्रियता, फ़ैली बहु विधि ,
जनजनमन हरषाय,विकास नित होय विविध-विधि ||
.....Chhand ke madhyam se janmanas ke liye bahut hi sundar nek kaamna....
Haardik shubhkamna..
धन्यवाद कविता जी....
----जब तक जन मन को हर्ष नहीं होगा ...उनका साहचर्य..समर्थन...सहयोग नहीं होगा ... कोई भी कार्य..सरकारी आदेश..नीति-नियम सफल नहीं होसकता...फिर विकास क्या?
vaah ,
धन्यवाद --१५०२..जी...आभार....
एक टिप्पणी भेजें