....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
माँ तेरे ही चित्र पर ,नित प्रति पुष्प चढ़ायं ,
मिश्री सी वाणी मिले, मन हरसे सुख पाँय |
तंत्र मन्त्र जानूं नहीं ,ना मैं वंदन ध्यान ,
माँ तेरा ही अनुसरण, मेरा सकल जहान |
मुक्ति नहीं हम चाहते,ना धन सम्पति मान ,
माँ का ही सुमिरन करें, जब तक घट में प्राण |
श्याम कौन कर पायगा,माता का गुण गान,
ब्रह्मा विष्णु महेश भी, बनते पुत्र समान |
पापी तो समझे यही, रहा न कोई देख,
सकल देवता देखते, अंतर-पुरुष विशेष ||
हे माँ! ज्ञान प्रदायनी, ते छवि निज उर धार |
दोहे रचूँ सुमिरि मन, महिमा अपरम्पार ||
देवी माँ के भजन से ,सब जन हुए विभोर |
जैसे चन्दा देखकर, हर्षित होंय चकोर |माँ तेरे ही चित्र पर ,नित प्रति पुष्प चढ़ायं ,
मिश्री सी वाणी मिले, मन हरसे सुख पाँय |
तंत्र मन्त्र जानूं नहीं ,ना मैं वंदन ध्यान ,
माँ तेरा ही अनुसरण, मेरा सकल जहान |
मुक्ति नहीं हम चाहते,ना धन सम्पति मान ,
माँ का ही सुमिरन करें, जब तक घट में प्राण |
श्याम कौन कर पायगा,माता का गुण गान,
ब्रह्मा विष्णु महेश भी, बनते पुत्र समान |
पापी तो समझे यही, रहा न कोई देख,
सकल देवता देखते, अंतर-पुरुष विशेष ||
5 टिप्पणियां:
पापी तो समझे यही, रहा न कोई देख,
सकल देवता देखते, अंतर-पुरुष विशेष ||
Kaash insaan ye baat samajh jaye!
ज्ञान के सौन्दर्य में पगे दोहे।
माँ की महिमा अपरम्पार
सभी दोहे एक से बढ़कर एक हैं! बहुत बढ़िया लगा! शानदार प्रस्तुती!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
धन्यवाद ..बबली जी...आशुतोष , क्षमा जी..व पांडे जी....
--अंतर-पुरुष विशेष ...इसको समझना ही स्वयं को समझना है...ईश्वर को समझना है...जगत को समझना है...कर्म द्वारा ..सदाचरण की राह...
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