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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

रविवार, 10 जुलाई 2011

बदरिया घिर घिर आये......वर्षा गीत....ड़ा श्याम गुप्त.....

                                                                  ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...

आई  सावन की बहार,'
बदरिया घिर घिर आये |
गूजें कजरी और मल्हार,
बदरिया घिर घिर आये |

रिमझिम रिमझिम पड़त फुहारें  ,
मुरिला पपीहा पीउ पुकारें |
चतुर टिटहरी निशि रस घोले,
चकवा-चकवी चाँद निहारें |

आये सजना नाहिं हमार,
बदरिया घिर घिर आये |
आई सावन की फुहार ,
बदरिया घिर घिर आये ||

घनन घनन घन जिय डरपाए,
झनन झनन झन जल बरसाए |
प्यासी  विरहन  बिरहा गाये,
पावस  तन मन को तरसाए |

दहके पावक बनी बयार ,
बदरिया घिर घिर आये |
गूंजें कजरी और मल्हार,
बदरिया घिर घिर आये ||

पिया गए परदेश न आये,,
बेरी  चातक टेर लगाए |
कागा बैठ मुंडेर न बोले,
श्यामा शुभ संदेश न लाये |

री सखि  ! कैसे पायल झनके .
घुँघरू छनके, कंगना खनके |
सखि  ! कैसे करूँ श्रृंगार ...
बदरिया घिर घिर आये |

आये  सजना नाहिं हमार ,
बदरिया घिर घिर आये ||

11 टिप्‍पणियां:

kshama ने कहा…

री सखि ! कैसे पायल झनके .
घुँघरू छनके, कंगना खनके |
सखि ! कैसे करूँ श्रृंगार ...
बदरिया घिर घिर आये |

आये सजना नाहिं हमार ,
बदरिया घिर घिर आये ||
Bahut sundar!

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

वर्षा सा सुख बरसाता शब्द प्रवाह।

नीरज गोस्वामी ने कहा…

श्याम जी आपके शब्द शब्द को चरितार्थ कर रही है आज यहाँ बारिश...अप्रतिम रचना है ...शब्द और भाव अनूठे हैं बधाई स्वीकारें.

Urmi ने कहा…

आये सजना नाहिं हमार,
बदरिया घिर घिर आये |
आई सावन की फुहार ,
बदरिया घिर घिर आये ||
घनन घनन घन जिय डरपाए,
झनन झनन झनन जल बरसाए |
प्यासी विरहन बिरहा गाये,
पावस तन मन को तरसाए |
बहुत सुन्दर लिखा है आपने ! भावपूर्ण पंक्तियाँ ! लाजवाब प्रस्तुती!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

shyam gupta ने कहा…

धन्यवाद क्षमा जी,बबली जी, पांडे जी व नीरज जी ..आभार...

vidhya ने कहा…

वर्षा सा सुख बरसाता शब्द प्रवाह।
बहुत ही सुन्दर आप का स्वागत मरे ब्लॉग पे

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

बरखा की फुहारों जैसी रचना.....

shyam gupta ने कहा…

धन्यवाद वीनाजी व विद्या जी ...

Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…

प्रिय श्याम जी सावन की मनोरम झांकी और गोरी का रंगीला श्रृंगार आनंद आ गया -नीचे के शब्द अगर हम यों लिखते तो ..
मुरिला -मुरैला
घनन घनन घन जिय डरपाए,
झनन झनन झन जल बरसाए |
बैरी चातक टेर लगाए |
.बधाई हो
शुक्ल भ्रमर ५
बाल झरोखा सत्यम की दुनिया

shyam gupta ने कहा…

---"गोरी का रंगीला श्रृंगार आनंद आ गया" ---भैया पहले काव्य का अर्थ तो समझलो ......गोरी श्रृंगार कर ही नहीं पा रही...तुम्हें रंगीला श्रृंगार का आनंद कहाँ से आगया....

---पहले मुरिला व मुरैला में क्या अंतर है ..ये बताओ ..तब आगे ऐसे लिखते तो पर बात करेंगे...

shyam gupta ने कहा…

---गोरी का रंगीला श्रृंगार ..भई .काव्य का अर्थ तो समझो ...गोरी श्रृंगार कर ही कहाँ पारही है..तो रंगीला कहाँ से होगया ..
---पहले ये बताओ कि मुरिला व मुरैला में क्या अंतर है ....बाद में सलाहपर टिप्पणी करूँगा..
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