. ...कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
कल लगभग १० वर्ष बाद संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीटयूट जाना हुआ | सुन्दर टाइल्स से, ग्रेनाईट पत्थर से , सुन्दर बना हुआ शानदार हस्पताल देख कर मन प्रसन्न होता है | कुछ देर पश्चात ही मैं अवाक् रहगया जब देखने में आया कि-- रोगियों के रिश्तेदार - स्ट्रेचर, व्हील चेयर आदि पर स्वयं ही रोगियों को घसीट कर लेजा रहे हैं जैसे -तैसे , रोगियों के बिस्तर बदलने, एक स्ट्रेचर से पलंग पर लिटाने, पलंग से स्ट्रेचर , कुर्सी पर बिठाने, जांच की रिपोर्टें आदि दौड़ दौड़ कर लाने का कार्य भी रोगियों के रिश्तेदार ही कर रहे हैं , बहुत से रोगी अपने घर के स्वयं के ही कपडे पहने हुए हैं, रोगियों(गंभीर रोगी व् आई सी यू में भी ) को दैनिक क्रियाएं --दवा खिलाना, मल-मूत्र कराना, भी रोगी के रिश्तेदार कर रहे हैं ---मज़बूरी है---- ....इन सभी कार्यों के लिए चिकित्सालयों में नर्सिंग कर्म चारी होते हैं ,वार्ड-बॉय , सफाई वाले, नर्सेस होती हैं जो तनख्वाह प्राप्त कर्मचारी हैं ..इन्ही कार्यों के लिए ......परन्तु वे कोइ भी कार्य करते नहीं दिखे.... बस साथ साथ चलते हैं कि रिश्तेदार स्ट्रेचर आदि लेकर घर न चला जाय ,.अपितु रोगी को एम्बुलेंस आदि में डिस्पोज़ के उपरांत वे यह भी अपेक्षा रखते हैं कि रोगी का साथी उन्हें व स्ट्रेचर आदि को वापस वार्ड तक छोड़ भी आये ....जबकि अच्छी खासी रकम बसूली जाती है अस्पताल द्वारा एवं प्रत्येक दवा, उपकरण का भी कीमत बसूली जाती है..........पूछे जाने पर वही बज़ट कम का राग....चिकित्सकों का कथन है कि इनलोगों की युनियन है, हम कुछ नहीं कर सकते .....लोग यह भी कहते मिले कि आजकल सब जगह यही हाल है साहब ...कोइ कर्मचारी तो काम करना ही नहीं चाहता.....प्राइवेट हस्पतालों में भी यही हाल है ....
मैं सोचने लगता हूँ कि यदि बज़ट की इतनी कमी है तो( वैसे पीजी आई के लिए बज़ट की कमी नहीं है ) शानदार ग्रेनाईट , टाइल्स , लम्बे लम्बे दालान आदि के बिना भी काम चल सकता है शो कोइ इतनी बड़ी आवश्यकता नहीं --यह बज़ट सेवा कार्यों में प्रयोग किया जा सकता है |......परन्तु वास्तव में यह हममें , समाज में ,कर्मचारियों में, मनुष्य मात्र में सेवा -भावना की कमी, असंवेदन शीलता का ही भाव है .....|
आज हम इक्कीश्वीं सदी में ...विज्ञान के उन्नतिशिखर पर ...सभ्यता के उन्नत शिखर पर पहुँच गए हैं....हम सेवा के विभिन्न कार्यों ---- मंदिरों में चढ़ावा, सोने चांदी का छत्र चढाते हैं, गरीबको खाना खिलाने का , बांटने का, निर्धन छात्रों को धन देने का, पाने पिलाने के लिए प्याऊ लगाने, पर्वों , मेलों में प्रसाद के नाम पर शरबत, पूड़ी मिठाई बांटने का कोइ अवसर नहीं छोड़ते...एन जी ओ के नाम पर, जाने कितने समाज सेवी संगठन , महिला संगठन, घर-घर, गाँव गाँव जाकर एवं न जाने कितने सेवा के कार्यों में लिप्त हैं... .कोइ १००० पेड़ लगाने का लक्ष्य का झंडा उठाये हुए है, कोइ महिला उत्थान का झंडा उठाये है....कोइ प्रौढ़ - शिक्षा की रट लगाए हुए है, .... । कोई वलात्कार रोकने की, कोई महिला उत्थान की ....सरकारें व तमाम संगठन प्रतिवर्ष समाज सेवा के पुरस्कार बाँटते हैं.......लगता है सारा समाज जन की सेवा में लगा हुआ है..... मैं सोचता हूँ हाँ ......सेवा(??) ही रह गयी है जन के मन से सेवा भाव तिरोहित होगया है......कर्मचारी पगार के लिए सेवा-योजित है सेवा के लिए नहीं ... , नौकरी करता है कमाने के लिए ----सेवा के लिए नहीं ....समाज सेवी अपने नाम के लिए सेवा करता है ,पुरस्कार के लिए .....नाम व .धंधा चमकाने के लिए | यह समाज में असंवेदनशीलता की पराकाष्ठा है, प्रत्येक स्तर पर...सरकार, समाज, चिकित्सक, कर्मचारी , हम.....मनुष्य मात्र ..... | उन्हें यह कौन समझाये ..बताये कि ...जिस कार्य के लिए वे सेवारत हैं , पगार लेते हैं उसे न करना ....बेईमानी है, चोरी है, भ्रष्टाचार है...अनाचार है...पाप है.....
6 टिप्पणियां:
सेवा ही आधार है,मानव-विकास का।
so nice post,thanks
हर स्तर पर असंवेदनशीलता है ..हॉस्पिटल ही क्या..सड़क पर कोई मार रहा है और हमें आफिस जाने की जल्दी होती है..ये बीमारी कैंसर से भी भयावह है ...
सर बिना परिश्रम का कमाया हुआ धन चोरी के सामान ही है और आज - कल ऐसा ही हो रहा है !
धन्यवाद पांडेजी...सत्य है यदि मानव को ही यथावत सेवा न मिले तो भौतिक विकास क क्या अर्थ ...विकास मानव-मात्र के लिए है न की मानव, विकास के लिए मात्र एक टूल....
धन्यवाद शुक्ला जी...शा व आशुतोष...सही कहा असंवेदनशीलता प्रत्येक क्षेत्र में केंसर की भांति घर कर गयी है...अति भौतिकता के व अति-सुखाभिलाषा के कारण यह होता है |
बिना परिश्रम कमाया धन समाज में असमानता व द्वंद्व उत्पन्न करता है और परिणामी असामाजिकता ....अनाचार ...सांस्कृतिक पतन ...
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