....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
१-दोहा...
हम स्वतंत्र एडवांस हैं ,मन में गर्व असीम |
पर इस सब में बिक गया, दरवाजे का नीम |
२- त्रिपदा अगीत ....
मौसम श्रृंगार नख शिखों की,
बातें पुरानी होगईं हैं;
कवि ! गीत गाओ राष्ट्रके अब |
३- अगीत ..खून सना धागा....
अब वो हिन्दोस्तां ,
कभी वापस नहीं आएगा ;
खून सना धागा ,
कहाँ इतने टुकड़ों को ,
जोड़ पायेगा |
४- अगीत - विकास ...
बिकास की
कुलाचें मारता मेरा देश ,
व्यक्ति को धकियाकर
चढ गया ऊंचा,
होकर निर्धनों का धनी देश |
हम स्वतंत्र एडवांस हैं ,मन में गर्व असीम |
पर इस सब में बिक गया, दरवाजे का नीम |
२- त्रिपदा अगीत ....
मौसम श्रृंगार नख शिखों की,
बातें पुरानी होगईं हैं;
कवि ! गीत गाओ राष्ट्रके अब |
३- अगीत ..खून सना धागा....
अब वो हिन्दोस्तां ,
कभी वापस नहीं आएगा ;
खून सना धागा ,
कहाँ इतने टुकड़ों को ,
जोड़ पायेगा |
४- अगीत - विकास ...
बिकास की
कुलाचें मारता मेरा देश ,
व्यक्ति को धकियाकर
चढ गया ऊंचा,
होकर निर्धनों का धनी देश |
1 टिप्पणी:
प्रभावी क्षणिकायें, भा गयीं।
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