..कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
(कारण, कार्य व प्रभाव गीत....)
अभी तो शेष है मुझमें ,
अथक संघर्ष की क्षमता |
        
तिमिर होने लगी है किन्तु -
धुंधली सी किरण भी है |
मुझे लगता है यह संदेह,
बस यूंही अकारण है ||
अँधेरे भेद कब पाए ,
भला उजियार की क्षमता |
साथ मेरे चले जो भी ,
वही झिलमिल किरण होगा |
राग दीपक की लहरी से,
तिमिर का तम हरण होगा ||
समझ तूफ़ान कब पाए,
कहाँ साए की ठंडक में,
धूप की तपन सी क्षमता |
पला सायों में उसने कब ,
जहां का दर्द जाना है |
तप दिनभर वही समझा ,
दर्दे-गम का तराना है ||
अँधेरे भ्रम के कब समझे ,
मौन विश्वास की क्षमता |
नहीं होती कोइ सीमा ,
किसी भ्रम के निवारण की |
नहीं होती मगर श्रृद्धा,
कभी यूंही अकारण ही ||
अहं का गीत क्या जाने ,
समर्पण भाव की क्षमता |
अहं में अनसुनी चाहे,
करो तुम वन्दना मेरी |
समर्पण भाव में मैं तो,
तुम्हारे छंद गाता हूँ ||
(कारण, कार्य व प्रभाव गीत....)
अभी तो शेष है मुझमें ,
अथक संघर्ष की क्षमता |
तिमिर होने लगी है किन्तु -
धुंधली सी किरण भी है |
मुझे लगता है यह संदेह,
बस यूंही अकारण है ||
अँधेरे भेद कब पाए ,
भला उजियार की क्षमता |
साथ मेरे चले जो भी ,
वही झिलमिल किरण होगा |
राग दीपक की लहरी से,
तिमिर का तम हरण होगा ||
समझ तूफ़ान कब पाए,
तरणि-संघर्ष की क्षमता |
       बहुत चाहा, नहीं जलयान,
            तट की  शरण जा पाये |
               धैर्य संकल्प के आगे ,
                   कहाँ तूफ़ान टिक पाए ||कहाँ साए की ठंडक में,
धूप की तपन सी क्षमता |
पला सायों में उसने कब ,
जहां का दर्द जाना है |
तप दिनभर वही समझा ,
दर्दे-गम का तराना है ||
अँधेरे भ्रम के कब समझे ,
मौन विश्वास की क्षमता |
नहीं होती कोइ सीमा ,
किसी भ्रम के निवारण की |
नहीं होती मगर श्रृद्धा,
कभी यूंही अकारण ही ||
अहं का गीत क्या जाने ,
समर्पण भाव की क्षमता |
अहं में अनसुनी चाहे,
करो तुम वन्दना मेरी |
समर्पण भाव में मैं तो,
तुम्हारे छंद गाता हूँ ||

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
3 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर प्रेरक प्रस्तुति है आपकी.
अनुपम अभिव्यक्ति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आकर आपने 'शिवलिंग' पर अपने अनुपम सुविचार प्रस्तुत किये,इसके लिए भी बहुत बहुत आभार.
मन सशक्त, संशय अशक्त है।
धन्यवाद राकेश जी व पांडे जी....
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