....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
सोलह हज़ार रानियाँ और पटरानी आठ |
सोलह हज़ार रानियाँ और पटरानी आठ |
श्री कृष्ण भगवान के देखो कैसे ठाठ |
देखो कैसे ठाठ,रीति यह भी बचपन की,
हर गोपी की चाह, किशोरी या पचपन की |
बृज-बालाओं संग नित्य नव रास रचाते,
राधा सखियाँ संग प्रेम की पींग सजाते ||
रास रचाते नाचते, बढ़ीं प्रेम की पींग |
चली प्रेम की रीति , प्रीति बस राधा से थी,
अन्य किसी की ओर नैन की डोर नहीं थी |
श्याम, प्रिया से अन्य कहाँ कब आँख लगाई,
उसी प्रिया को त्याग, बने जग में हरजाई ||
सोलह हज़ार नारियाँ, परित्यक्ता गुमनाम |
निज रानी सम श्याम ने उन्हें दिलाया मान |
उन्हें दिलाया मान, नयी जग-रीति सजाई,
कभी किसी की ओर नहीं पर आँख उठाई |
जग में प्रथम प्रयास यह, नारी का उद्धार,
भ्रमवश कहते रानियाँ, थीं सोलहों हज़ार ||
रीति निभाई जगत की, जो पटरानी आठ |
अन्य किसी के साथ कब, श्याम निभाए ठाठ |
श्याम निभाए ठाठ, कहा- जग माया संभ्रम ,
जीवन राह में मिलें, हज़ारों आकर्षण-भ्रम |
यही श्याम की सीख, योग है यही कृष्ण का,
जल, जल-जीव व पंक, मध्य नर रहे कमल सा ||
6 टिप्पणियां:
यही श्याम की सीख, योग है यही कृष्ण का,
जल, जल-जीव व पंक, मध्य नर रहे कमल सा ||
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार,श्याम जी.
प्रेम से ओतप्रोत आपकी रचना अप्रतिम है...बधाई स्वीकारें
नीरज
लीलाधारी की लीलायें।
धन्यवाद राकेश जी , गोस्वामी जी व पांडे जी...आभार ...
बहुत सुन्दर सार्थक रचना
आपकी सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार!
धन्यवाद शर्मा जी...
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