....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
माँ शारदे !
( हरिगीतिका छंद -- २८ मात्रा , चार चरण, चरणान्त में लघु -गुरु , तुकांत )
माँ शारदे आराधना ही ज्ञान का आधार है |
माँ वाग्देवी,वीणा-वादिनि ज्ञान का भण्डार है |
माता सरस्वति,मातु वाणी ज्ञान का आगार है |
मातु अर्चन-साधना ही साहित्य का संसार है ||
हम हैं शरण में आपकी माँ ज्ञान के स्वर दीजिए |
सुख-शान्ति का वातावरण जग में रहे वर दीजिए |
कवि हों सुहृद समर्थ सात्विक सौख्य स्वर परिपूर्ण हों |
साहित्य हो सुंदर शिवं सत-तथ्य शुचि सम्पूर्ण हों ||
( हरिगीतिका छंद -- २८ मात्रा , चार चरण, चरणान्त में लघु -गुरु , तुकांत )
माँ शारदे आराधना ही ज्ञान का आधार है |
माँ वाग्देवी,वीणा-वादिनि ज्ञान का भण्डार है |
माता सरस्वति,मातु वाणी ज्ञान का आगार है |
मातु अर्चन-साधना ही साहित्य का संसार है ||
हम हैं शरण में आपकी माँ ज्ञान के स्वर दीजिए |
सुख-शान्ति का वातावरण जग में रहे वर दीजिए |
कवि हों सुहृद समर्थ सात्विक सौख्य स्वर परिपूर्ण हों |
साहित्य हो सुंदर शिवं सत-तथ्य शुचि सम्पूर्ण हों ||
6 टिप्पणियां:
हरिगीतिका छंद में की गई उत्तम रचनायें.... बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक धन्यवाद!
भक्तिमयी कृति।
अद्भुत छंद का सृजन करा दिया माँ सरस्वती ने आपसे। वाह! आनंद आ गया।
सुंदर विचार सुंदर कविता के माध्यम से. आभार.
धन्यवाद...पांडे जी, ड़ा वर्षा व मदन जी.....
माँ लिखती तो सबकुछ तुम हो,
नाम मुझे बस दे देती हो |
बहुत सुन्दर प्तथा सार्थक पोस्ट , आभार
dhanyavaad , shukla jee....
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