....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
चित्र गूगल- साभार |
प्रीति का एक दीपक जलाओ सखे !
देहरी का सभी तम सिमट जायगा |
प्रीति का गीत इक गुनुगुनाओ सखे !
ये ह्रदय दीप फिर जगमगा जायगा ||
द्वेष क्या , द्वंद्व क्या ,
प्रीति निश्वांस सी |
एक लौ जल उठे ,
मन में विश्वास की |
आस का दीप ज्यों हीजले श्वांस में ,
जिंदगी का अन्धेरा भी कट जायगा | .------प्रीति का एक दीपक ....||
ये अन्धेराहै क्यों,
विश्व में छा रहा ?
साया आतंक का ,
कौन बिखरा रहा !
राष्ट्र के भाव अंतस सजाओ सखे !
ये कुहांसा तिमिर का भी छंट जायगा | ----प्रीति का एक दीपक .......||
नेह से , प्रीति से,
प्रीति की रीति का |
एक दीपक जले,
नीति की प्रीति का |
नेह-नय के दिए जगमगाओ सखे !
विश्व का हर अन्धेरा सिमट जायगा | -----प्रीति का एक दीपक ......||
मन में छाया हो ,
अज्ञान ऊपी तिमिर |
सूझता सत् असत -
भाव कुछ भी नहीं |
ज्ञान का दीप तो इक जलाओ सखे !
बाल-रवि से छितिज जगमगा जायगा |
प्रति का एक दीपक जलाओ सखे !
देहरी का सभी तम सिमट जायगा ||
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