....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
दोस्त सब एक से कब होते हैं |
कुछ अपने लगते हैं, नहीं होते हैं |
मिल गए आप तो हमने ज़ाना ,
दोस्त कुछ आपसे भी होते हैं |
सितारे आस्मां पर ही नहीं खिलते ,
कुछ सितारे जमीं पर भी होते हैं |
दोस्त बस हंसते-खेलते ही नहीं ,
कुछ दोस्त दर्दे-दिल भी पिरोते हैं |
दोस्त के दुःख दर्द कठिन घड़ियों में ,
दोस्त भी साथ -साथ होते हैं |
दर्द बांटना आसाँ नहीं है 'श्याम ,
दर्दे-दिल दोस्त ही संजोते हैं ||
दोस्त सब एक से कब होते हैं |
कुछ अपने लगते हैं, नहीं होते हैं |
मिल गए आप तो हमने ज़ाना ,
दोस्त कुछ आपसे भी होते हैं |
सितारे आस्मां पर ही नहीं खिलते ,
कुछ सितारे जमीं पर भी होते हैं |
दोस्त बस हंसते-खेलते ही नहीं ,
कुछ दोस्त दर्दे-दिल भी पिरोते हैं |
दोस्त के दुःख दर्द कठिन घड़ियों में ,
दोस्त भी साथ -साथ होते हैं |
दर्द बांटना आसाँ नहीं है 'श्याम ,
दर्दे-दिल दोस्त ही संजोते हैं ||
5 टिप्पणियां:
दर्द बांटना आसाँ नहीं है 'श्याम ,
दर्दे-दिल दोस्त ही संजोते हैं ||
बहुत शानदार भावपूर्ण गजल है आपकी.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा डॉ.साहिब.
हनुमान लीला पर आपके बहुमूल्य
सुविचार आमंत्रित हैं.अनुग्रहित कीजियेगा.
सितारे आस्मां पर ही नहीं खिलते ,
कुछ सितारे जमीं पर भी होते हैं |
दोस्त बस हंसते-खेलते ही नहीं ,
कुछ दोस्त दर्दे-दिल भी पिरोते हैं |
Bahut achhee lageen ye panktiyan!
बहुत ही सुन्दर।
sundar prayas
धन्यवाद सुशमा जी, पान्डे जी, क्षमा जी,अना व ---राकेश जी... आपके ब्लोग हनुमान जी की पर सुन्दर भाव-तत्व व्याख्या देखी...बधाई ...
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