....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
ऊधो ! ज्ञान कहौ समुझाय |
का है सार, तत्व का कहिये, काकी प्रीति सुहाय |
कस नचिहै, कस धेनु चरावै, कैसें माखन खाय |
कस नचिहै, कस धेनु चरावै, कैसें माखन खाय |
कहौ , सुनै वाकी मुरलीधुनि, गोसुत- गाय रम्भाय |
मैया के अंगना में कैसें नचि-नचि जिय भरमाय |
कंकर मारि मटुकिया फौरै, कैसें दधि फैलाय |
का गोपिन संग रास रचावै, का वो चीर चुराय |
कालियनाग कौं नाथि सके का फन फन वेणु बजाय |श्याम' कहौ ऊधो ! का गिरि कों अँगुरी लेय उठाय ||
ऊधो ! ज्ञान कहौ समुझाय ||
3 टिप्पणियां:
बड़ा ही सुन्दर वर्णन ज्ञान का।
बेहतरीन लिखा है,
धन्यवाद जाट देवता जी व पान्डे जी....
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