....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
ॐ
प्रविशि नगर कीजै सब काजा,
ह्रदय राखि कौशलपुर राजा।
---सभी गुणीजनों को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें.....डा श्याम गुप्त...
वर्ष की प्रथम गज़ल......
सरस्वती वन्दना ....
वन्दना के स्वर ग़ज़ल में कह सकूं माँ शारदे !
कुछ शायरी के भाव का भी ज्ञान दो माँ शारदे !
माँ की कृपा यदि हो न तो कैसे ग़ज़ल साकार हो,
कुछ कलमकारी का मुझे भी ज्ञान दो माँ शारदे !
मैं जीव माया बंधनों में स्वयं को भूला हुआ,
नव स्वर लहरियों से हे माँ! ह्रद-तंत्र को झंकार दे |
मैं स्वयं को पहचान लूं उस आत्मतत्व को जान लूं,
अंतर में अंतर बसे उस परब्रह्म को गुंजार दे |
हे श्वेत कमलासना माँ !, हे श्वेत वस्त्र से आवृता,
वीणा औ पुस्तक कर धरे,नत नमन लो माँ शारदे !
मैं बुद्धिहीन हूँ काव्य-सुर का ज्ञान भी मुझको नहीं ,
उर ग़ज़ल के स्वर बह सकें कर वीणा की टंकार दे |
ये वन्दना के स्वर-सुमन अर्पण हैं माँ स्वीकार लो ,
हो धन्य जीवन श्याम'का बस कृपा हो माँ शारदे ||
--- चित्र गूगल साभार
1 टिप्पणी:
बस यही वर दे हे देवी।
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