....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
पहुन्चौ एक दिना मैं ,
एक कवि सम्मलेन में |
घोषणा हती-' कछु पल माहिं-
कविजी कौ आगमन होत रहै|'
गरीब जी हते वे , अरु -
कहलावें थे जा युग के 'निराला'-
कांख में लटकौ झोला खाली,
गले में अटकी हाला |
बातनि बातनि बीच ही वे ,
कही लेत थे उक्तियाँ ,
भारी भरकम विनकी काया ,
कहि रहे थे पंक्तियाँ ;-
" हाय कैसी करुन गाथा ,
बाल मिट्टी छांटते |
और अवलाएं बिचारी ,
कूटती भईं गिट्टियां |
भूख ते बेहाल तन मन ,
जुवा माटी ढोय रहे,
वृद्ध बालक उन घरन में ,
भूखी ते हैं रोय रहे |"
दई गयीं नेतान कौं, अरु-
सासन कौं हूँ कछु गालियाँ |
झूमि उठे लोग सब,
सुनिकैं बजाईं तालियाँ |
एक श्रोता नैं जो उठि कें, पूछौ-
कै ये तौ बताइये |
कौन, का कारण है जाकौ ,
किरपा करि समुझाइये |
और सबके सार में -
समाधान तौ कहि जाइए |
कविता सुनिवे कौ हमें ,
कछु लाभ तौ दिलवाइये |
कविजी बोले, भैया-
हम तौ कवि हैं ,
यथारथवादी हैं ,
दरपन दिखावत हैं ,
भौगौ साँचु बतावत हैं ;
समाज में का है रहौ है ,
ये समुझावत हैं |
समाधान तौ -
सासन व जनता कौं खोजिवै चाहियें -
हम तौ कवि हैं ,
लिखत हैं और गावत हैं |
श्रोता बोलौ--फिरि-
कविता कवि और साहित्य की ,
अखबार ही सबते सस्तौ है आज ||
पहुन्चौ एक दिना मैं ,
एक कवि सम्मलेन में |
घोषणा हती-' कछु पल माहिं-
कविजी कौ आगमन होत रहै|'
गरीब जी हते वे , अरु -
कहलावें थे जा युग के 'निराला'-
कांख में लटकौ झोला खाली,
गले में अटकी हाला |
बातनि बातनि बीच ही वे ,
कही लेत थे उक्तियाँ ,
भारी भरकम विनकी काया ,
कहि रहे थे पंक्तियाँ ;-
" हाय कैसी करुन गाथा ,
बाल मिट्टी छांटते |
और अवलाएं बिचारी ,
कूटती भईं गिट्टियां |
भूख ते बेहाल तन मन ,
जुवा माटी ढोय रहे,
वृद्ध बालक उन घरन में ,
भूखी ते हैं रोय रहे |"
दई गयीं नेतान कौं, अरु-
सासन कौं हूँ कछु गालियाँ |
झूमि उठे लोग सब,
सुनिकैं बजाईं तालियाँ |
एक श्रोता नैं जो उठि कें, पूछौ-
कै ये तौ बताइये |
कौन, का कारण है जाकौ ,
किरपा करि समुझाइये |
और सबके सार में -
समाधान तौ कहि जाइए |
कविता सुनिवे कौ हमें ,
कछु लाभ तौ दिलवाइये |
कविजी बोले, भैया-
हम तौ कवि हैं ,
यथारथवादी हैं ,
दरपन दिखावत हैं ,
भौगौ साँचु बतावत हैं ;
समाज में का है रहौ है ,
ये समुझावत हैं |
समाधान तौ -
सासन व जनता कौं खोजिवै चाहियें -
हम तौ कवि हैं ,
लिखत हैं और गावत हैं |
श्रोता बोलौ--फिरि-
कविता कवि और साहित्य की ,
का आवश्यकता है, महाराज ;
समाचार जानिवे कें लियें तौ -अखबार ही सबते सस्तौ है आज ||
1 टिप्पणी:
बहुत ही सुन्दर रचना..
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