....कर्म की बाती, ज्ञान का घृत हो, प्रीति के दीप जलाओ...
ऐ कलम ! अब छेड़ दो तुम नव तराने ,
पीर दिल की दर्द के नव आशियाने |
आसमानों की नहीं है चाह मुझको ,
मैं चला हूँ बस जमीं के गीत गाने ||
आज क्यों हर ओर छाई हैं घटाएं ,
चल रहीं हर ओर क्यों ये आंधियां |
स्वार्थ लिप्सा दंभ की धूमिल हवा में ,
लुप्त मानवता हुई है कहाँ जाने ||
तुम करो तो याद कुछ दायित्व अपना ,
तुम करो पूरा सभी दायित्व अपना |
तुम लिखो हर बात मानव के हितों की,
क्या मिलेगा भला प्रतिफल, राम जाने ||
तुम मनीषी और परिभू स्वयंभू हो ,
तोड़ कारा सभी वर्गों की, गुटों की |
चल पड़ो स्वच्छंद नूतन काव्य पथ पर,
राष्ट्र हित उत्थान के लिखदो तराने ||
हर तरफ समृद्धि-सुख की ही धूम है,
नव-प्रगति, नव साधनों की धूप फ़ैली |
चाँद-तारों पर जा पहुंचा आदमी है,
रक्त-रंजित धरा फिर भी क्यों, न जाने ?
व्यष्टि सुख में ही जूझता हर आदमी,
हित समष्टि न सोच पाता आदमी अब |
देश के अभिमान, जग सम्मान के हित,,
देश के उत्थान के लिख दो तराने ||
राष्ट्र-हित सम्मान के लिख दो तराने,
आज नव-उत्थान के लिख दो तराने |
तुम लिखो तो बात मानव के हितों की,
फल व प्रतिफल,तुम न सोचो, राम जाने ||
मैं चला हूँ इस जमीं के गीत गाने|
पीर दिल की दर्द के नव आशियाने |
ऐ कलम ! अब छेड़ दो तुम नव तराने ||
हमारा सच्चा खुशहाल गणतंत्र दिवस
तब होगा, जब हमारा प्यारा भारत
भ्रष्टाचार, अनैतिकता से मुक्त होगा
1 टिप्पणी:
देश के हित भाग्य की वर्षा मैं चाहूँ..
एक टिप्पणी भेजें