....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
'आइये डाक्टर साहब आज तो आप बहुत लेट होगये ।'
हाँ, डा.शर्मा बोले, मैं आज ज़रा दूसरी तरफ वाकिंग के लिए चलागया था । सोचा कि आप लोग जब तक सिनेमा के गाने -वाने गालें -सुनलें, बेडमिन्टन आदि खेल-खाल लें स्पा-स्टीम बाथ आदि का मज़ा लेलें, मैं तब तक घूमते-घूमते कुछ और चिंतन-मनन आदि करलूं .....आखिर मैं कब तक वही सिनेमा-विनेमा के गाने आदि सुनता रहूँगा ...वह भी इस उम्र में । मुझे तो बोरियत होती है अच्छा भी नहीं लगता ।
बंगलोर के एक रेसीडेंशियल मल्टीप्लेक्स शान्तिनिकेतन के केम्पस में अधिकाँश सीनियर सिटीज़न वे माता-पिता हैं जो अपने अपने बच्चों के, यहाँ बेंगलोर में सर्विस हेतु स्थापित हो जाने पर देश के विभिन्न स्थानों से आकर यहाँ रह रहे हैं । इनमें कुछ कुछ उत्साही सीनियर सिटीजन-गण ने, जिनमें ६० से ७५ वर्ष तक के व्यक्ति हैं, विदेशों की तर्ज़ पर फिट व स्मार्ट रहने के उद्देश्य से एक वर्ग बना लिया है जिसमें केम्पस में स्थित क्लब में प्रतिदिन बेडमिन्टन आदि खेलना, व्यायाम अदि करना, जोर जोर से सिनेमा की गानों को गाना आदि से मन बहलाना, सामान्य चुटुकुले, मिलकर जोर जोर से हँसने का कार्यक्रम व तरणताल, स्पा, स्टीम-बाथ, जिम आदि का उपयोग शामिल है । उपरोक्त वार्तालाप इसी ग्रुप के सदस्यों व डा शर्मा, जो कुछ समय से अपने बेटे के पास रहने आये थे, के बीच चल रहा था ।
अरे ! सिनेमा के सदाबहार प्यारे-प्यारे गानों ...मुकेश, रफ़ी, किशोर, लता ...में तो आनंद आता है । खुराना जी बोले । हंस-बोल कर, खेल-खाल कर फिट-फाट रहना चाहिए । ज़िंदगी के मज़े लीजिये ।
हाँ, वह तो है, शर्मा जी बोले, पर मैं समझता हूँ कि यह सब तो बहुत कर चुके ...बचपन में...युवावस्था में ...अब ये सब बच्चों के लिए रह गए हैं । हमें शायद कुछ और ऊपर के स्तर पर जाना चाहिए ।
कैसे ? करमाकर जी ने पूछा ।
देश, समाज, आचरण, नैतिक शुचिता, धर्म, अध्यात्म, साहित्य-इतिहास, शास्त्र, संस्कृति , स्व-संस्कृति आदि पर सोचें-विचारें चिंतन मनन करें, आपस में विचार-विमर्श करें, एक दूसरे को कहें बताएं और मौक़ा मिले तो बच्चों को, समूह-संस्थाओं के कलापों में कहें बताएं ।
शर्माजी आप करते रहिये ये सब बातें, कौन सुनता है । जोशी जी बोले, हमारे आपके कहने से क्या होता है, कोई फर्क नहीं पडेगा । जब सारा ज़माना ही वैज्ञानिक उन्नति के इस दौर में सुख-साधन व मनोरंजन में व्यस्त हैं तो हमें भी मस्त रहना चाहिए ...आखिर सीनियर सिटीज़न के भी तो अधिकार हैं ।
फिर जब यहां सब सुख-सुविधा मुफ्त में प्राप्त है, अखिल जी बोले, हमने काफी पैसा देकर यहाँ फ्लेट खरीदा है जिसमें इन सब सुविधाओं का भी मूल्य लेलिया गया है, तो उसका लाभ क्यों न उठाया जाय ?
हाँ, एसा लगता तो है, शर्मा जी कहने लगे, परन्तु हमें यह भी तो सोचना चाहिए कि इस उम्र में ..नाती-पोते वाले होकर आप क्या कर लेंगे यह सब करके । क्या बच्चे यह नहीं सोचते होंगे कि इस उम्र में भी इन्हें यह सब सूझ रहा है । यह भी है कि... मुफ्त तो है ....जो मुफ्त नहीं है आपसे कीमत बसूल ली गयी है ....परन्तु देश का कितना धन इस सब सामान आदि को प्राप्त करने के लिए के लिए विदेशों में चला जाता है , यह सब आपका अपना तो है नहीं । हम आप यदि इस सब को प्रयोग करके बढ़ावा देंगे तो बच्चे इसी को आवश्यक समझेंगे ...फिर फिर आपूर्ति हेतु विदेशी मुद्रा खर्च होगी और आपको व आपकी सरकार को समझौते करने होंगे.... .महंगाई बढ़ेगी ...भ्रष्टाचार आदि भी ......मर्ज़ बढ़ता ही जाएगा ज्यों ज्यों दवा करेंगे .....इस क्रम का कोई अंत ही नहीं । यह बाज़ार है...मुफ्त का लालच ..फिर उपभोग की आवश्यकता ...फिर अति-सुख -अभिलाषा ..लक्ज़री ... फिर और पैसा फिर और खर्च ...फिर और पैसा प्राप्ति हेतु हर प्रकार का उद्योग ।
हाँ, यह भी सच है, जोशी जी की ओर उन्मुख होकर शर्माजी कहते गए.....कि हो सकता है हमारी-आपकी ये सब नीति-धर्म मय बातें, कथन आदि 'अरण्य रोदन ' की भाँति प्रतीत हो या 'नक्कार खाने में तूती की आवाज़ ' बन कर रह जाय । परन्तु "विचार " परा-वाणी है, वह भी शब्द-ब्रह्म की भाँति अक्षय, अनश्वर है ।...शायद व्यक्त वाणी "बैखरी " से भी तीब्र गति से विकिरित होने वाले इलेक्ट्रोंन -तरंगों की भाँति । शब्द की भाँति विचार भी कभी व्यर्थ नहीं जाते, प्रभाव डालते हैं ...जाने -अनजाने ..अव्यक्त रूप से ....वातावरण पर, वायुमंडल पर, व्यष्टि व समष्टि के स्नायु-तंत्र पर, मन पर । वे जन जन के मन पर अवश्य प्रभाव डालते हैं होम्योपेथिक -मात्रा की भाँति ......रामचरित मानस में वर्णित "पापी अजामिल की कथा" की भाँति ...। शुभ-शुभ कहो, बुरा न सोचो, आशीर्वाद, वन्दना, भजन, कथा-कीर्तन, जप -तप, घंटा-ध्वनि, वैचारिक मनन-चिंतन, ध्यान-योग आदि सब का यही अर्थ है ।
ऊंची आवाज में प्रार्थना करने से १०० गुना अधिक प्रभाव धीमी ध्वनि में सस्वर प्रार्थना से होता है....उससे भी १०० गुना प्रभाव जप अर्थात होठों ही होठों में जाप का एवं उससे भी १०० गुना प्रभाव मन ही मन जाप ..चिन्तन-मनन करने पर होता है ।
अतः इस उम्र में आप लोग शरीर बनाने के लिए बेडमिन्टन आदि गेम्स ( जो रिस्की भी हैं ), अति-व्यायाम, स्पा आदि का मज़ा लेने व समय काटने की अपेक्षा कुछ और उच्च चिंतन-मनन आदि करें तो शायद अवश्य ही अधिक उचित रहेगा । हर कार्य उम्र के अनुसार भी तो होना चाहिए । जहां तक व्यायाम की बात है मैं समझता हूं कि सामान्यतः ---२/२.५ कि मी टहलना काफी होगा ।
5 टिप्पणियां:
स्कूली शिक्षा के समय
विज्ञान का एक नियम पढ़ा था : ऊर्जा नष्ट नहीं होती, परिवर्तित होती है.
इसलिये इसे विस्तार देकर सोचता हूँ.... 'विचार' भी एक प्रकार की ऊर्जा है... जो अच्छा-बुरा प्रभाव छोडती है.
सात्विक विचारों का प्रभाव .... अहिंसा, आदर, करुणा, त्याग, समर्पण, सदाचार, विश्वास, श्रद्धा, प्रेम, ममता आदि रूपों में देखा जा सकता है.
जिस घर में जिस प्रकार की विचार-लहरी विद्यमान होगी वहाँ उसी प्रकार की गूँज सुनायी पड़ेगी.
गाली-गलौज करने वाले माता-पिता अपने परिवारों के कलेशमय वातावरण में मन की शांति गँवाये दिखेंगे और सत्संग में नियम बनाकर जाने वाले माता-पिता अपने स्वभाव और विचारों से अपनी संतानों में अज्ञात रूप से संस्कार भर रहे होंगे.
बहुत बढ़िया।
समयानुसार आदतें भी बदलती रहती हैं..
धन्यवाद----बहुत सटीक बात कही है प्रतुल जी....वास्तव में ही विचार एक ऊर्ज़ा है...अनश्वर..
--विवरण विशेष के साथ सारगर्भित टिप्पणी के लिये आभार ...
---धन्यवाद शास्त्री जी...आभार..
---धन्यवाद पान्डे जी ...सही है समय के अनुसार ही सब कुछ उचित होता है ...
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