अंक चार का शेष
अगले दिन लाइब्रेरी के सामने सुमित्रा को एक सीनियर छात्र डा नारंग से बात करते हुए देखा । मुझे देखते ही वह मुस्कुराकर माथे पर बल डालते हुए चली आयी ।
' भई, डा नारंग क्या गुरुमंत्र देरहे थे ?' मैंने हंसते हुए पूछा ।
ही....ही....ही.....वह हंसते हुए बोली , 'प्रशंसा कर रहे थे कि क्या भाषण दिया है, क्या मार्के की बात कहती हो ।' चलो काफी पिलायें ।
फिर...?
' मैंने कहा, कृष्ण मेरे इंतज़ार में है आप चलिए मैं उसे लेकर आती हूँ ।' ....ही...ही ... ही .... वह हंसने लगी ।
फिर क्या बोले ...!
' तेरे से कौन टक्कर ले, रे त्रिभंगी ! '
व्हाट ! ये कौन सी भाषा है ? ये उन्होंने कहा ।
'दैया रे दैया, अपनी ही बोली-बानी भुलाय दई, रे नटवर ! नगर में आय कै।'......ही .ही.... ही ......ही..... ही ... जैसे उसे हंसी का दौरा पड़ गया हो ।
अब कहो भी, क्या भीड़ इकट्ठा करने का इरादा है ।
' क्या कहूं ? ' वह हंसते हंसते वोली, ' फिर कभी कह कर फूट लिए ।'
भई उनका भी दिल रखलेना चाहिए था ।
'दिल से कह रहे हो?', फिर किस किस का दिल रखती रहूँगी, क्यों पचड़े में पडूँ ।' हाँ तुम बताओ ये क्या होगया है तुम्हें ?
अब मुझे क्या हुआ ?
कुमुद से तुमने क्या उलटा-सीधा कह दिया ?
अरे हाँ, उसे अचानक क्या हुआ था, अब ठीक है ?
'ठीक तो है महाज्ञानी जी,परन्तु तुमने उसे बहुत निराश कर दिया ।'
क्यों ? मैंने क्या किया ? जो कुछ कहा था तुम्हारे सामने ही तो कहा था, और उससे उसे क्या ।
अरे बावा ! वह तुम पर लाइन मार रही थी ।' चाहती थी ।
'तो अब ?'
तुम्हारी बातें सुन कर सहम गयी । बोली, 'बड़े विचित्र विचारों वाला निर्मोही व नीरस व्यक्ति है।'
मैं हंसने लगा, 'चाहत बड़ी गहरी और ऊंची शय है' , है न सुमि ? 'जो इतनी जल्दी उतर जाय वह चाहत ही क्या । जो चंद बातों से घबरा जायं वो क्या जानें चाहत क्या है ।'
हूँ, सो तो है । सुमि ने सीरियस होकर सिर हिलाया ।
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छुट्टियों के बाद सुमित्रा जब दिल्ली से लौट कर आई तो कुछ उदास व चुप चुप थी। मैंने पूछा,
' क्या बात है, क्या किसी से लड़कर आई हो ? '
' नहीं भई ।', सुमित्रा बोली ।
'तो फिर क्या बात है ?'
सुमि चुप रही तो सुमन उपाध्याय ने बताया । कृष्ण जी, वो श्रुति की डेथ हो गयी है न ।
कौन श्रुति ? मैंने पूछा ।
केजी, भूल गए। अपने साथ फर्स्ट ईयर में एक लड़की थी श्रुति, जिसने बाद में दिल्ली मेडीकल कालिज में ट्रांसफर करा लिया था ।
अच्छा, वो एक दम गोरी, सुन्दर सी गोल-मटोल लड़की जो किसी आईऐएस की बेटी थी ।
हाँ, हाँ वही, उसकी मृत्यु होगई ।
कैसे ?
उसे 'पिट्यूटरी ट्यूमर' होगया था न, इसीलिये तो दिल्ली ट्रांसफर कराया था । पिछली बार अचानक मुलाक़ात हुई थी । वह 'स्टीरोइड' पर थी। आपरेट भी किया गया था। परसों ही बह चल बसी। 'सुमि ने बताया।'
'रियली सैड' तभी वह इतनी सुन्दर गोल-मटोल थी ।'
' हाँ, मेरी रूम-पार्टनर थी न' , सुमि डबडबाई आँखों से बोली , ' खूब हंसमुख व खूब बोलने वाली ।'
चलो काफी लेलो, जी ठीक होजायगा ।' मैंने कहा ।
नहीं मन नहीं है, मैं चलती हूँ ।
ठीक है, टेक केयर, ईश्वर की मर्जी । मैंने कन्धों पर हाथ रखते हुए कहा ।
वह सिर हिलाते हुए जबरदस्ती मुस्कुराई और सुमन के साथ चली गयी ।
-----अंक चार समाप्त ....क्रमश: ...अंक पांच ...अगली पोस्ट में .....
2 टिप्पणियां:
दुखी होउगे, सरल हिय, बसहुँ त्रिभंगी लाल..
सुन्दर...सुन्दर पान्डे जी......धन्यवाद...
--धन्यवाद शास्त्री जी ...आभार...
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