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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

गुरुवार, 29 मार्च 2012

कामन मैन...और लोकतंत्र ....डा श्याम गुप्त ...

                              ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...

                 इस लोकतंत्र में कामन मैन की तो कोई कीमत ही नहीं  है, वह कामन जो है ...विशिष्ट  नहीं ...सेलीब्रिटी भी नहीं .... उसे कोई विशेषाधिकार  भी नहीं ...सिवाय पांच साल में एक बार ..."ज्यों गाडर की ठाट" ..की भाँति  लाइन लगा कर अपना अमूल्य 'वोट' देने के ।
                श्री सोमनाथ चटर्जी का,....जो कम्युनिस्ट पार्टी के विचारक हैं जिसे जनता की, जनता के लिए पार्टी कहा जाता है ...  कहना है कि संसद सर्वोपरि है ।  सिविल सोसायटी के सदस्यों पर सांसद  ( संसद नहीं क्योंकि संसद तो जन है या फिर सिर्फ भवन की दीवारें  और बोलने-कहने  में अक्षम ) एक जुट थे इससे साफ़ हुआ कि लोकतंत्र मजबूत है । विचारा लोकतंत्र तो है ही मजबूत, तंत्र जो है ...सिर्फ लोक ही नहीं है ----अपने मसले पर तो सभी ...मौसेरे भाई हो जाते हैं । उनका यह भी कथन है कि  मैदान में भीड़ जुटा लेने से कोई जन-प्रतिनिधि नहीं बन जाता ...यह भीड़तंत्र है लोकतंत्र नहीं .......इसके लिए उन्हें पहले चुनाव लड़कर ...विशिष्ट बनना पडेगा ....विशेषाधिकार प्राप्त करना पडेगा ।  क्या २०% वोट लेकर चुनाव जीतकर  आने वाले लोकतंत्र के नुमायंदे हैं???? 
                   इधर सचिन तेंदुलकर का  व सहवाग का कथन है कि वे अभी जवान हैं...मैंने रिटायरमेंट की बात करनेवाले कामन मैन से तो क्रिकेट सीखा नहीं, उन्होंने तो एक भी शतक नहीं बनाया तो उन्हें रिटायरमेंट की सलाह देने का क्या अधिकार ? पता नहीं मुझे लगता है जो जनता क्रिकेट के बारे में जानती ही नहीं उसे क्रिकेट देखने का अधिकार भी होना चाहिए या नहीं ....दूरदर्शन पर .प्रसारण भी नहीं होना चाहिए ..कितने   पैसे  व समय  की बचत  होगी ..।
                  इधर जनरल साहब ने सोचा कि यूंही कामनमैन बनकर रिटायर होकर क्या लाभ, इतनी बड़ी पोस्ट पर भी कोई नहीं पूछ रहा, कोई नहीं पूछेगा बाद में, अतः क्यों न कुछ नाम कमाकर ही जाया जाए ...हो सकता है आगे राजनीति में आने का मौक़ा,  विशिष्ट बनने का  मौक़ा मिल जाए । 
                   और ' आज़ाद औरत '  भी तो वही विशिष्ट बनने की कहानी है ....समझ में नहीं आता जो नारी घर, समाज, राष्ट्र व मानवता के लिए, पुरुषों की श्रेष्ठता संवर्धन के लिए जानी जाती रही है वह ..पहाड़ों पर चढ़कर ..सागर में डुबकी लगाकर क्या हासिल करना चाहती है ? 
                        तभी तो विशिष्ट बनने के लिए  नारी कपडे उतारने लगी है और पुरुष खेलकूद, फ़िल्मी हीरो बनने, किसी भी जोड़तोड़ से नेता बनने  व अपराध में लिप्त ......


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