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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

शुक्रवार, 30 मार्च 2012

लो आज छेड़ ही देते हैं...डा श्याम गुप्त की ग़ज़ल...

                      ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...

लो  आज छेड़ ही देते हैं,  उस  फ़साने को,   
तेरी चाहत में थे हाज़िर, ये दिल लुटाने को।          

आज फिर जाने क्यूं, जाने क्यूं न जाने क्यूं,
याद करता है  दिले -नादाँ उस ज़माने को ।

जाने क्यूं आज फिर से, ये दिल की धड़कन,
तेरी चाहत की वो धुन, चाहे गुनगुनाने को ।

तेरी गलियों में, न जाने क्यूं न जाने क्यूं,
फेरे लगते थे, तेरी एक झलक पाने को ।

जाने क्यूं रूह जिगर जिस्म और जानो-अदा,
रहते हाज़िर, तेरी चाहत में सर झुकाने को ।

अब तो चाहों ने भी मुख फेर लिया है हमसे,
दोष दें, खुद को या तुझको कि इस ज़माने को ।

तुमको हम याद करें भी, तो भला कैसे करें ,
हम तो भूले ही नहीं , आपके फ़साने को ।

चाहतों की भी कोई, श्याम' उम्र होती है, 
उम्र की बात भी होती है, क्या सुनाने को ।।
 


 

7 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

न उम्र की सीमा हो...

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

खूबसूरत गजल.... वाह!
सादर।

Kailash Sharma ने कहा…

तुमको हम याद करें भी, तो भला कैसे करें ,
हम तो भूले ही नहीं , आपके फ़साने को ।

...बहुत खूब! बेहतरीन प्रस्तुति...

shyam gupta ने कहा…

----धन्यवाद शास्त्री जी .....

shyam gupta ने कहा…

--धन्यवाद पान्डे जी..
..उम्र की बात कब होती है बताने को ...

shyam gupta ने कहा…

धन्यवाद हबीब जी ...आभार

shyam gupta ने कहा…

धन्यवाद कैलाश जी.....आभार ...फ़साने भूलने को होते ही कब हैं..

" यादें क्या हैं
मन की लाइब्रेरी में
संजो कर रखी गयीं,
पुस्तकें, ग्रन्थ, संदर्भ ग्रन्थ या सीडी...जिन्हें -
हम जब चाहें,
किसी कोने से निकलेकर या सीदी लोद करके,
पढ लेते हैं, और जीलेते है उन
भूले बिसरे क्षणों को ।