....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
लो आज छेड़ ही देते हैं, उस फ़साने को,
तेरी चाहत में थे हाज़िर, ये दिल लुटाने को।
आज फिर जाने क्यूं, जाने क्यूं न जाने क्यूं,
याद करता है दिले -नादाँ उस ज़माने को ।
जाने क्यूं आज फिर से, ये दिल की धड़कन,
तेरी चाहत की वो धुन, चाहे गुनगुनाने को ।
तेरी गलियों में, न जाने क्यूं न जाने क्यूं,
फेरे लगते थे, तेरी एक झलक पाने को ।
जाने क्यूं रूह जिगर जिस्म और जानो-अदा,
रहते हाज़िर, तेरी चाहत में सर झुकाने को ।
अब तो चाहों ने भी मुख फेर लिया है हमसे,
दोष दें, खुद को या तुझको कि इस ज़माने को ।
तुमको हम याद करें भी, तो भला कैसे करें ,
हम तो भूले ही नहीं , आपके फ़साने को ।
चाहतों की भी कोई, श्याम' उम्र होती है,
उम्र की बात भी होती है, क्या सुनाने को ।।
तेरी चाहत में थे हाज़िर, ये दिल लुटाने को।
आज फिर जाने क्यूं, जाने क्यूं न जाने क्यूं,
याद करता है दिले -नादाँ उस ज़माने को ।
जाने क्यूं आज फिर से, ये दिल की धड़कन,
तेरी चाहत की वो धुन, चाहे गुनगुनाने को ।
तेरी गलियों में, न जाने क्यूं न जाने क्यूं,
फेरे लगते थे, तेरी एक झलक पाने को ।
जाने क्यूं रूह जिगर जिस्म और जानो-अदा,
रहते हाज़िर, तेरी चाहत में सर झुकाने को ।
अब तो चाहों ने भी मुख फेर लिया है हमसे,
दोष दें, खुद को या तुझको कि इस ज़माने को ।
तुमको हम याद करें भी, तो भला कैसे करें ,
हम तो भूले ही नहीं , आपके फ़साने को ।
चाहतों की भी कोई, श्याम' उम्र होती है,
उम्र की बात भी होती है, क्या सुनाने को ।।
7 टिप्पणियां:
न उम्र की सीमा हो...
खूबसूरत गजल.... वाह!
सादर।
तुमको हम याद करें भी, तो भला कैसे करें ,
हम तो भूले ही नहीं , आपके फ़साने को ।
...बहुत खूब! बेहतरीन प्रस्तुति...
----धन्यवाद शास्त्री जी .....
--धन्यवाद पान्डे जी..
..उम्र की बात कब होती है बताने को ...
धन्यवाद हबीब जी ...आभार
धन्यवाद कैलाश जी.....आभार ...फ़साने भूलने को होते ही कब हैं..
" यादें क्या हैं
मन की लाइब्रेरी में
संजो कर रखी गयीं,
पुस्तकें, ग्रन्थ, संदर्भ ग्रन्थ या सीडी...जिन्हें -
हम जब चाहें,
किसी कोने से निकलेकर या सीदी लोद करके,
पढ लेते हैं, और जीलेते है उन
भूले बिसरे क्षणों को ।
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