....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
होरी के हुरदंग को, होरा भूने हूर ।
हूर-हूर पर चढ रहा,देखो नूर-शुरूर ॥
देखो नूर-शुरूर, चहुं तरफ़ हैं हुरियारे,
तक-तक कर रंगधार,बदन पर मारें प्यारे।
श्याम,भीग कर हुईं,रंगीली सब ही गोरी,
होरी के हुरदंग को, होरा भूने हूर ।
हूर-हूर पर चढ रहा,देखो नूर-शुरूर ॥
देखो नूर-शुरूर, चहुं तरफ़ हैं हुरियारे,
तक-तक कर रंगधार,बदन पर मारें प्यारे।
श्याम,भीग कर हुईं,रंगीली सब ही गोरी,
सखी री मोहे रंगि दीन्हो गोपाल |
भरि पिचकारी प्रीति भरे रंग, नीलो पीलो लाल |
तकि तकि अंग-अंग रंग रस डारौ अंग-अंग भये निहाल |
भींजी अंगिया, भींजी सारी, सकुचि हिये भई लाल |
बरबस बरजूं लोक लाज वस, नहिं मान्यो गोपाल |
अंग-अंग रंग टपकै झर-झर, मुसुकावैं लखि ग्वाल
श्याम ' श्याम ऐसी रंगि दीन्ही, तन मन भयो गुलाल ||
भरि पिचकारी प्रीति भरे रंग, नीलो पीलो लाल |
तकि तकि अंग-अंग रंग रस डारौ अंग-अंग भये निहाल |
भींजी अंगिया, भींजी सारी, सकुचि हिये भई लाल |
बरबस बरजूं लोक लाज वस, नहिं मान्यो गोपाल |
अंग-अंग रंग टपकै झर-झर, मुसुकावैं लखि ग्वाल
श्याम ' श्याम ऐसी रंगि दीन्ही, तन मन भयो गुलाल ||
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