....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
"कालजयी रचना कहाँ?" पर ---
वस्तुतः शास्त्रीय, भाषिक व साहित्यिक ज्ञान की कमी होने से एवं छंद का वास्तविक अर्थ न जानने वाले सिर्फ तुकांत कविता के बंद को ही छंद समझते हैं अपितु उनसे भी आगे जाकर कुछ कविगण दोहा, सवैया आदि शास्त्रीय छंदों को ही छंद मानते हैं .....वास्तव में लयात्मक स्वर में गति व लय युक्त रचना छंद कहलाती है चाहे वह तुकांत हो या अतुकांत.....क्या निराला के कालजयी अतुकांत गीत ...वह तोड़ती पत्थर ...या अबे सुन बे गुलाब ....लय, यति गति व गेयता युक्त नहीं हैं। अतः इस प्रकार की बात कहने वाले नादान हैं साहित्य से अनजान...साहित्य की गरिमा व प्रोटोकोल भी वे नहीं जानते ....क्या कभी काव्य का सूरज भी अस्त होसकता है ....एसी रचनाएँ असाहित्यिक कोटि में आती हैं...यूं हांजी हांजी कहने वाले तो हर जगह होते हैं....... उनके लिए ये दोहे प्रस्तुत हैं ..... क्योंकि सत्य को दिखाती हुई टिप्पणियाँ उनके ब्लॉग पर नहीं प्रकाशित की जातीं ...
दोहे
कैसे कैसे मूर्ख हैं, बन बैठे कवि आज।
कहें लुप्त है काव्य का नभ में सूरज आज।
काव्य रूप मां शारदे, क्या हो सकती लुप्त।
तत्व-ज्ञान से हीन कवि,मां को करते छुब्ध।
बिना छन्द कविता कहीं होती है महाराज।
मुक्तछन्द तुक हीन जो, वेद-मन्त्र रसराज।
जिसमें हो कुछ गेयता, काव्य उसी का नाम।
लय,गति,यति हो,तुक नहो,मुक्तछन्द का नाम।
गन्गा तो गन्गा सदा,कीचड मिले या पंक।
वह भी गंगा रूप धर,हो जाती शुचि कन्ज।
बिना छंद रचते यथा,ज्यादातर कविराज ।
मां शारदे कृपा यह,नई रह-गुजर आज।
अज्ञानी पिछडे रहें, प्रगति न आये रास ।
छन्द तो सदा ही रहे,कविता का सरताज।
मुक्त-छन्द तुक रहित हो, या तुकान्त हो छंद।
गति यति हो, रस-भाव हो, मिलता काव्यानंद ।
पढ कर सब देखें जरा, वे अगीत के छंद ।
ब्लोग ’अगीतायन ’पढें, मिले अमित आनंद ।
----------- पढ़ें अतुकांत कविता व अगीत कविता के बारे में....अगीतायन ब्लॉग (http://ageetayan.blogspot.com)
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2 टिप्पणियां:
कविता अपने लय और प्रवाह से जानी जाती है, कुछ न कुछ तो आवश्यक ही है।
बिल्कुल सच है....लय और प्रवाह होना चाहिये ...चाहे तुकान्त हो या अतुकान्त या मुक्त छंद कविता....वस्तुतः वही कवि अतुकान्त कविता लिख सकता है व उसके साथ न्याय कर सकता है जो स्वयं शास्त्रीय साहित्य व तुकान्त-छन्दोबद्ध काव्य में निष्णात होगा...
"मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगम शास्वती समा।
यद क्रोन्च मिथुनादेकम वधी काम मोहितं॥"
---आदि कवि का यह आदि छन्द श्लोक अतुकान्त मुक्त छंद है...और एक सुन्दरतम काव्य..
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