....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
वे जो
सिर्फ छंदोबद्ध कविता ही की बात करते हैं, वस्तुतः छंद, कविता, काव्य-कला व साहित्य का अर्थ ठीक प्रकार से नहीं जानते-समझते एवं संकुचित अर्थ व विचार धारा के पोषक हैं। वे केवल तुकांत-कविता को ही
छंदोबद्ध कविता कहते हैं। कुछ तो केवल वार्णिक छंदों -कवित्त, सवैया, कुण्डली आदि -को ही छंद समझते हैं। छंद क्या है ? कविता क्या है ?
वस्तुतः कविता, काव्य-कला, गीत आदि नाम तो बाद मैं आए। आविर्भाव तो छंद -नाम ही हुआ है। छंद ही कविता का वास्तविक सर्व प्रथम नाम है। सृष्टि-महाकाव्य- में सृष्टि निर्माण की प्रक्रिया में कवि कहता है--
" चतुर्मुख के चार मुखों से ,
ऋक,यजु ,साम ,अथर्व वेद सब ;
छंद शास्त्र का हुआ अवतरण ,
विविध ज्ञान जगती मैं आया। "----श्रृष्टि खंड से।
वास्तव में प्रत्येक कविता ही छंद है। प्राचीन रीतियों के अनुसार आज भी विवाहोपरांत प्रथम दिवस पर दुल्हा-दुल्हिन को छंद -पकैया खेल खिलाया जाता है (कविता नहीं)। इसमें दौनों कविता मैं ही बातें करते हैं। इसके दो अर्थ हैं --
वस्तुतः कविता, काव्य-कला, गीत आदि नाम तो बाद मैं आए। आविर्भाव तो छंद -नाम ही हुआ है। छंद ही कविता का वास्तविक सर्व प्रथम नाम है। सृष्टि-महाकाव्य- में सृष्टि निर्माण की प्रक्रिया में कवि कहता है--
" चतुर्मुख के चार मुखों से ,
ऋक,यजु ,साम ,अथर्व वेद सब ;
छंद शास्त्र का हुआ अवतरण ,
विविध ज्ञान जगती मैं आया। "----श्रृष्टि खंड से।
वास्तव में प्रत्येक कविता ही छंद है। प्राचीन रीतियों के अनुसार आज भी विवाहोपरांत प्रथम दिवस पर दुल्हा-दुल्हिन को छंद -पकैया खेल खिलाया जाता है (कविता नहीं)। इसमें दौनों कविता मैं ही बातें करते हैं। इसके दो अर्थ हैं --
१.कविता का असली नाम छंद है.,छंद ही कविता है।
२ काव्य
-कला जीवन के कितने करीब है । जो छंद बनाने मैं प्रवीणता, ज्ञान की कसौटी है वह संसार-चक्र में जाने के लिए उपयुक्त है
। आगे आने वाला जीवन छंद की भांति अनुशासित परन्तु निर्बंध, लालित्यपूर्ण, विवेकपूर्ण, सहज, सरल, गतिमय व तुकांत-अतुकांत की तरह प्रत्येक
आरोह-अवरोह को झेलने में समर्थ रहे।
छंद का अर्थ है अनुशासन । स्वानुशासन में बंधी, लयबद्ध रचना,
चाहे तुकांत हो या अतुकांत। वैदिक छंद व मन्त्र सभी अतुकांत हैं परन्तु
लयानुशासन बद्ध--हिन्दी में अगीत ने यही स्वीकारा है । जब कहा जाता है कि "स्वच्छंदचारी न शिवो न विष्णु यो जानाति स पंडितः"----अर्थात
शिव व विष्णु स्व छंद, अर्थात स्वानुशासन के व्यवहारी हैं, किसी जोड़-तोड़
के अनुशासन के नहीं ..स्वलय. स्वभाव,आत्मानुवत,आत्मभूत, सहज भाव वाला। अगीत कविता भाव यही है ।
अतः छंद ही कविता है, हर कविता छंद है -तुकांत, अतुकांत; गीत-अगीत सभी । छंद का अपना विस्तृत आकाश है। आकाश को छोटा न कर।
अतः छंद ही कविता है, हर कविता छंद है -तुकांत, अतुकांत; गीत-अगीत सभी । छंद का अपना विस्तृत आकाश है। आकाश को छोटा न कर।
7 टिप्पणियां:
aabhaar ||
AABHAAR SIR
धन्यवाद रविकर जी...
मेरा नया ब्लोग--- अगीतायन...(http://ageetayan.blogspot.com )
बहुत बढ़िया,आभार....
श्याम जी,फालोवर बन गया हूं आपभी बने मुझे खुशी होगी,.....
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: मै तेरा घर बसाने आई हूँ...
आकाश कभी छोटा न होगा..
धन्यवाद धीरेन्द्र जी....आभार ...बन गया..
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धन्यवाद पान्डे जी... सत्य बचन..आकाश तो अनन्त है...
" पूर्णात पूर्णं उदच्यते पूर्णामेवावष्यते"
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