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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

शुक्रवार, 6 अप्रैल 2012

. गट्टू पहलवान ...डा श्याम गुप्त की लघु कथा ...

                           ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...




                             खाने की  छुट्टी में किशोर जब अपना खाना खाकर स्कूल के पीछे वाले खुले स्थान में पहुंचा, जिसे बच्चे खेलने के लिए प्रयोग करते थे, तो सारे बच्चे चुपचाप थे । कोई भी न लट्टू चला रहा था न कंचे खेले जारहे थे ।
          सब चुपचाप क्यों हैं, खेल क्यों नहीं रहे। क्या हुआ ? किशोर पूछने लगा ।
           गट्टू राकेश का लट्टू व कंचे छीन ले गया है ।
           ये कौन है, उसने राकेश के कंचे क्यों छीन लिए और तुम लोगों ने रोका  नहीं ? किशोर बोला । क्या वो अपने स्कूल में पढ़ता है ।
            अबे ! वो  पहलवान  है, गट्टू दादा । अपने स्कूल का तो नहीं है | वह पीछे की गली में रहता है और पहलवान है, ताकतबर भी ।  मंदिर के  पंडित परिवार का है । कोई कुछ नहीं कह सकता । परसों राकेश ने अपना लट्टू देने से मना किया था तो  पिटाई कर दी । रोशन बोला, जो स्वयं  इसी गली में रहता था ।
              पर बाहर वाले का यहाँ क्या काम, और पहलवान का बच्चों से क्या मतलब। किशोर ने कहा।
             क्या करें वह दादा जो है ।
             क्यों सब लोग पकड़कर पीटें, तो उसे भागना पडेगा ।
             अच्छा  तुम करके देखना, पता चल जाएगा। यह किताब पढ़ना थोड़े ही है  जो रटकर होशियार बन जाओ,  मास्टर जी क्लास का मानीटर बना देंगे।
            लोहार गली में  जैन श्वेताम्बर मंदिर का प्राइमरी स्कूल था।  किशोर का अभी अभी दाखिला हुआ था। खाने की छुट्टी में बच्चे स्कूल के पीछे वाली गली में एक खाली स्थान पर खेलने में व्यस्त होजाते थे । कभी कभी सुबह स्कूल खुलने से पहले आकर एवं पूरी छुट्टी के बाद भी खेला करते थे । गट्टू पहलवान पीछे वाली गली में स्थित शहर के बड़े वाले शिव-मंदिर के पंडित परिवार का छोटा बेटा था । पंडित परिवार शहर के धाकड़ खानदानों में था । यद्यपि पंडित खानदान ने शहर को बड़े बड़े डाक्टर , अफसर अदि भी दिए थे परन्तु वह दादागीरी के लिए भी मशहूर था ।  इस शहर में धाकड़, अकड़बाज़ व पहलवान टाइप के  लोगों को को दादा कहा जाता था । हर गली मोहल्ले का एक दादा हुआ करता था । उनके  बच्चे व परिवारी जन भी दादा होते थे ।
            अगले दिन  जब   किशोर खेल के मैदान में पहुंचा तो देखा कि सभी बच्चे एक  गठीले बदन  व गट्टे शरीर के एक लडके को घेर कर खड़े थे, उसका शरीर अन्य सामान्य बच्चों से कुछ अधिक बड़ा था । किशोर को देखते ही रोशन बोला, चलो इन्हें प्रणाम करो हाथ जोड़कर ।
              कौन है ये । किशोर बोला, अपने स्कूल का तो नहीं लगता।
              ये  दादा हैं, गट्टू पहलवान । रोशन बोला, प्रणाम करो ।
              क्यों ?
               सब प्रणाम करते हैं दादा को ।
              'अबे कौन है तू ?' गट्टू ने किशोर को घूरकर  देखते हुए कहा। नया नया आया है क्या ।
               हाँ, उस्ताद, ये किशोर है , नया नया आया है, क्लास का मानीटर भी है । कल पूछ रहा था, कौन है ये। किशोर चुपचाप खडा रहा तो गट्टू बोला ,       
             ' चल चुपचाप अपना लट्टू दे ।'
             नहीं देता, क्या कर लोगे ? पहलवान हैं तो अखाड़े में जाएँ, बच्चों को क्या धमकाते हो। किशोर बोला।
             अबे उल्लू के........। गट्टू तेजी से आगे बढ़ा तो किशोर ने उसे जोर से धक्का दिया। फिर वे एक दूसरे से भिड़ गए, गुत्थम -गुत्था होगये । कभी किशोर ऊपर तो कभी गट्टू । बच्चे डर के कारण गट्टू की वाह वाह किये जारहे थे । तभी खाने की  छुट्टी  समाप्त होने की घंटी बजी । दोनों खड़े होकर एक दूसरे को देखने लगे। बच्चे किशोर से कहने लगे, खूब पिटे...खूब पिटे ।
               पीटा भी तो पहलवान को, दादा को, किशोर बोला ।
                गट्टू धमकाता हुआ, फिर देखूंगा कहता हुआ चला गया । बच्चे खुश भी थे कि आज उनके लट्टू-कंचे छीने जाने से बच गए।
                 अगले दिन खाने की छुट्टी पर बच्चे कहने लगे,  'रोशन, आज तुम्हारे गट्टू दादा नहीं आये !'
     


2 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

प्रतिकार तो करना ही होगा।

shyam gupta ने कहा…

--- धन्यवाद पान्डे जी...
---मनसा, वाचा, कर्मणा...हर स्तर पर प्रतिकार- चाहे प्रतीक रूप ही क्यों न हो..हानि उठाकर ही क्यों न हो....निश्चय ही आगे संघर्ष की भूमिका और प्रगति व मुक्ति का पथ खोलते हैं..