....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
अहं-ब्रह्मास्मि
मैं ही वह देवाधिदेव हूँ ,
द्वेष और ईर्ष्या अलिप्त हूं |
अजर -अमर हूँ मैं ईश्वर हूँ ,
परमानंद मैं परम शिव हूँ ||
मैं अनंत हूँ सर्वश्रेष्ठ हूँ,
पुरुष के रूप भोग-आनंद |
जिस " मैं " को अनुभव सब करते,
मैं ही हूँ वह शब्द अनंत ||
मैं आनंदघन और ज्ञान घन ,
सुखानुभूति, अनुभव, आनंद |
उपनिषदों का ज्ञाता मैं हूँ,
विश्व-रूप अज्ञान अनंत ||
वाद तर्क और जिज्ञासा से,
प्राप्त तत्त्व जो, मुझे ही जान |
मैं ऋषि ,सृष्टा सृजन-क्रिया हूँ ,
समय का सृष्टा मुझको मान ||
तृप्ति प्रगति समृद्धि दीप हूँ,
आनंदमय और पूर्ण प्रकाश |
अंदर-बाहर व्याप्त रहूँ मैं,
प्राण रहित सब जग में वास ||
ज्ञान ज्ञेय ज्ञाता मैं ही हूँ ,
परे ज्ञान से परम तत्व हूँ |
मैं निर्गुण, निष्क्रिय शाश्वत हूँ ,
निर्विकार हूँ, नित्य मुक्त हूँ ||
औषधियों का ओज-तत्व हूँ ,
सारा जग मेरा आभासी|
मैं निर्लिप्त अमल अविनाशी,
मैं ही सारा जगत प्रकाशी ||
मैं मन नहीं आत्म अविनाशी,
सत्य रूप अंतर-घट बासी |
त्याज्य ग्राह्य से भाव रहित हूँ,
परमब्रह्म मैं घट-घट बासी ||
----चित्र गूगल साभार...
अहं-ब्रह्मास्मि
मैं ही वह देवाधिदेव हूँ ,
द्वेष और ईर्ष्या अलिप्त हूं |
अजर -अमर हूँ मैं ईश्वर हूँ ,
परमानंद मैं परम शिव हूँ ||
मैं अनंत हूँ सर्वश्रेष्ठ हूँ,
पुरुष के रूप भोग-आनंद |
जिस " मैं " को अनुभव सब करते,
मैं ही हूँ वह शब्द अनंत ||
मैं आनंदघन और ज्ञान घन ,
सुखानुभूति, अनुभव, आनंद |
उपनिषदों का ज्ञाता मैं हूँ,
विश्व-रूप अज्ञान अनंत ||
वाद तर्क और जिज्ञासा से,
प्राप्त तत्त्व जो, मुझे ही जान |
मैं ऋषि ,सृष्टा सृजन-क्रिया हूँ ,
समय का सृष्टा मुझको मान ||
तृप्ति प्रगति समृद्धि दीप हूँ,
आनंदमय और पूर्ण प्रकाश |
अंदर-बाहर व्याप्त रहूँ मैं,
प्राण रहित सब जग में वास ||
ज्ञान ज्ञेय ज्ञाता मैं ही हूँ ,
परे ज्ञान से परम तत्व हूँ |
मैं निर्गुण, निष्क्रिय शाश्वत हूँ ,
निर्विकार हूँ, नित्य मुक्त हूँ ||
औषधियों का ओज-तत्व हूँ ,
सारा जग मेरा आभासी|
मैं निर्लिप्त अमल अविनाशी,
मैं ही सारा जगत प्रकाशी ||
मैं मन नहीं आत्म अविनाशी,
सत्य रूप अंतर-घट बासी |
त्याज्य ग्राह्य से भाव रहित हूँ,
परमब्रह्म मैं घट-घट बासी ||
----चित्र गूगल साभार...
7 टिप्पणियां:
मैं मन नहीं आत्म अविनाशी,
सत्य रूप अंतर-घट बासी |
त्याज्य ग्राह्य से भाव रहित हूँ,
परमब्रह्म मैं घट-घट बासी ||
बहुत बेहतरीन सुंदर रचना,,,,,श्याम जी,,,,
RECENT POST ,,,,,पर याद छोड़ जायेगें,,,,,
इस विषय पर अद्भुत अभिव्यक्ति..
आशय यही है डॉ श्याम गुप्त जी ,डॉ जाकिर भाई रजनीश जी हमारी मौखिक परम्पराएं ,दंत कथाएँ फिर चाहे भले वे धार्मिक रंजक लिए हों उनमे मौजूद विज्ञान तत्वों पर चर्चा हो .विज्ञान कथा लेखन को पंख लगें .वैसे भी दंत कथाओं का कोई मानक स्वरूप नहीं होता है जितने मुख उतनी कथाएँ .आप सभी विद्वत जनों का आभार .
औषधियों का ओज-तत्व हूँ ,
सारा जग मेरा आभासी|
मैं निर्लिप्त अमल अविनाशी,
मैं ही सारा जगत प्रकाशी ||
आनंद वर्षण करती आगे बढती है पूरी रचना .बधाई .
धन्यवाद..धीरेन्द्र जी....
धन्यवाद पान्डे जी... आत्म स्वयं ही अद्भुत है...अद्भुत है आत्म-विद्या-विषय...
धन्यवद बीरू भाई...
--- आत्मग्यान तो है ही आनन्द-वर्षण....
---ये सब धर्मिक-रंजक तत्व समेटे कथायें, मौखिक परम्परायें..कोई काल्पनिक नहीं अपितु इनमें सत्य-व्यवहारिक-वैग्यानिक तत्व का बीज-मूल निहित होता है..जो व्यवहारिक-तथ्य में देश-कालानुसार विभिन्नताओं में बदलता रहता है..इसीलिये ये दन्त-कथायें कही जाती हैं...और इनके मूल मेन होता है मानव-सदाचरण की प्रगति....
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