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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

गुरुवार, 5 जुलाई 2012

ईश्वर-कण ... डा श्याम गुप्त ..

                      ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...

                      
                                    ईश्वर कण
                                 (  श्याम सवैया छंद )
                   (  ऋग्वेद के मंडल-१० -पुरुष व पृथ्वी सूक्त ...के अनुसार वह अव्यक्त तत्व....भारहीन,  अव्यय, अशब्द, अगम्य, अगोचर है| जब वह व्यक्त होता है तो भार व गति उत्पन्न करके अनंत ऊर्जा व अर्यमा (प्रकाश कण ) आदि प्रारंभिक  कण उत्पन्न करता है जिन्हें भार व गति प्रदान करता है | ये अर्यमा (प्रकाश कण ) व अन्यकण व  ऊर्जा संयुक्त होकर आगे परमाणु-पूर्व कण ....फिर इलेक्ट्रोन , न्यूट्रोन, प्रोटोन---परमाणु...अणु  आदि .....विस्तार से ..मेरे  सृष्टि महाकाव्य में  पंचम अशांति खंड में पढ़ें )

ढूंढ  लियो  बोसोन, कहें  करि खोज लई   ईश्वर-कण  की |
कण-कण में ईश विराजत है, बचपन से  सुनी हम  शास्त्रन की |
वो अनित्य है, अव्यय, अरूप, अशब्द, अगम्य, अगोचर सुनते रहे हैं |
वह  आनंदी-सूत, स्वधया- तदेकं, सदाधार ब्रह्म है गुनते रहे हैं ||

वही   ब्रह्म है सब के भार का भार,औ रूप का रूप रचावन हारा |
है कण कण का मूलाधार वही, कण-रूप औ सृष्टि सजावन हारा |
है भी, नहीं भी, सूर्यस्य-सूर्य औ  दृष्टि की दृष्टि  कहाता वही है |
अणु  का भी है अणु, विभु से भी है विभु,यह सारा साज सजाता वही है ||

रच श्याम ने सृष्टि का काव्य यथा, इस कण की ही तो महिमा गाई है |
कवि लाल  'सृजन के पल' में भी , इसी तत्व की गुण-गाथा छाई है |
वो सदा से उपस्थित, कण का भी कण, युग-युग से सृष्टि सजाता रहा है |
जिस  मानव ने खोजा 'बोसोन . उस मानव को  भी बनाता रहा है ||
 

1 टिप्पणी:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

कुछ खोजा सा लगता है, सब खोजा सा नहीं दिखता है..