....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
ईश्वर कण
( श्याम सवैया छंद )
( ऋग्वेद के मंडल-१० -पुरुष व पृथ्वी सूक्त ...के अनुसार वह अव्यक्त तत्व....भारहीन, अव्यय, अशब्द, अगम्य, अगोचर है| जब वह व्यक्त होता है तो भार व गति उत्पन्न करके अनंत ऊर्जा व अर्यमा (प्रकाश कण ) आदि प्रारंभिक कण उत्पन्न करता है जिन्हें भार व गति प्रदान करता है | ये अर्यमा (प्रकाश कण ) व अन्यकण व ऊर्जा संयुक्त होकर आगे परमाणु-पूर्व कण ....फिर इलेक्ट्रोन , न्यूट्रोन, प्रोटोन---परमाणु...अणु आदि .....विस्तार से ..मेरे सृष्टि महाकाव्य में पंचम अशांति खंड में पढ़ें )
ढूंढ लियो बोसोन, कहें करि खोज लई ईश्वर-कण की |
कण-कण में ईश विराजत है, बचपन से सुनी हम शास्त्रन की |
वो अनित्य है, अव्यय, अरूप, अशब्द, अगम्य, अगोचर सुनते रहे हैं |
वह आनंदी-सूत, स्वधया- तदेकं, सदाधार ब्रह्म है गुनते रहे हैं ||
वही ब्रह्म है सब के भार का भार,औ रूप का रूप रचावन हारा |
है कण कण का मूलाधार वही, कण-रूप औ सृष्टि सजावन हारा |
है भी, नहीं भी, सूर्यस्य-सूर्य औ दृष्टि की दृष्टि कहाता वही है |
अणु का भी है अणु, विभु से भी है विभु,यह सारा साज सजाता वही है ||
रच श्याम ने सृष्टि का काव्य यथा, इस कण की ही तो महिमा गाई है |
कवि लाल 'सृजन के पल' में भी , इसी तत्व की गुण-गाथा छाई है |
वो सदा से उपस्थित, कण का भी कण, युग-युग से सृष्टि सजाता रहा है |
जिस मानव ने खोजा 'बोसोन . उस मानव को भी बनाता रहा है ||
1 टिप्पणी:
कुछ खोजा सा लगता है, सब खोजा सा नहीं दिखता है..
एक टिप्पणी भेजें