....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
अतुकांत कविता की एक विशिष्ट विधा---अगीत कविता---का प्रथम छंद-विधान--एक शास्त्रीय ग्रन्थ
नाम पुस्तक--- अगीत साहित्य दर्पण (अगीत काव्य एवं अगीत छंद विधान )
रचयिता ------ डा श्याम गुप्त
प्रकाशन ------ सुषमा प्रकाशन , लखनऊ एवं अखिल भारतीय अगीत परिषद , लखनऊ
प्रकाशन वर्ष --१ मार्च, २०१२ ई....पृष्ठ ---९४ ...मूल्य ....१५०/-रु.
संक्षिप्त विवरण
समर्पण--- डा रंगनाथ मिश्र सत्य एवं महाकवि श्री जगत नारायण पांडे को |
प्रस्तावना----"'अगीत साहित्य दर्पण' रचनाकारों के लिए एक मानक ग्रन्थ होगा"- -डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य', - संस्थापक अध्यक्ष , अखिल भारतीय अगीत परिषद, लखनऊ
शुभाशंसा ----प्रोफ. कैलाश देवी सिंह, पीएचडी . डी लिट, विभागाध्यक्ष, हिन्दी तथा आधुनिक भाषा विभाग, - लखनऊ वि. विद्यालय, लखनऊ |
दो शब्द ------ कविवर श्री रामदेव लाल 'विभोर' महामंत्री, काव्य कला मंदिर, लखनऊ |
पूर्व कथन व आभार .... लेखक
मंगलाचरण ----
१.
माँ वाणी! माँ सरस्वती |
माँ शारदे |
अगीत को नवीन सुरलय ताल का
संसार दे |
नए नए स्वर, छंद-
नवल विचार दे |
यह अगीत काव्य ,
जन जन में विस्तार पाए ;
मूढमति श्याम का -
माँ जीवन सुधार दे ||
२.
हे अगीत ! तुम निहित गीत में,
गीत तुम्हारे अंतर स्थित |
नए छंद , नव भाव, नवल स्वर ,
ले अवतरित हुए हे चेतन !
वंदन हित वाणी-विनायकौ ,
नमन श्याम का हो स्वीकार ||
विषय - अनुक्रमणिका ....
प्रथम अध्याय ....अगीत: एतिहासिक पृष्ठभूमि व् परिदृश्य ..
द्वितीय अध्याय ....अगीत : क्यों व क्या है एवं उसकी उपयोगिता ..
तृतीय अध्याय ...अगीत : वर्त्तमान परिदृश्य व भविष्य की संभावना ..
चतुर्थ अध्याय ....अगीत छंद व उनका रचना विधान ..
पंचम अध्याय ....अगीत की भाव संपदा ..
षष्ठ अध्याय ..... अगीत का कला पक्ष ......
(----क्रमश ... प्रस्तावना --.)
अतुकांत कविता की एक विशिष्ट विधा---अगीत कविता---का प्रथम छंद-विधान--एक शास्त्रीय ग्रन्थ
नाम पुस्तक--- अगीत साहित्य दर्पण (अगीत काव्य एवं अगीत छंद विधान )
रचयिता ------ डा श्याम गुप्त
प्रकाशन ------ सुषमा प्रकाशन , लखनऊ एवं अखिल भारतीय अगीत परिषद , लखनऊ
प्रकाशन वर्ष --१ मार्च, २०१२ ई....पृष्ठ ---९४ ...मूल्य ....१५०/-रु.
संक्षिप्त विवरण
समर्पण--- डा रंगनाथ मिश्र सत्य एवं महाकवि श्री जगत नारायण पांडे को |
प्रस्तावना----"'अगीत साहित्य दर्पण' रचनाकारों के लिए एक मानक ग्रन्थ होगा"- -डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य', - संस्थापक अध्यक्ष , अखिल भारतीय अगीत परिषद, लखनऊ
शुभाशंसा ----प्रोफ. कैलाश देवी सिंह, पीएचडी . डी लिट, विभागाध्यक्ष, हिन्दी तथा आधुनिक भाषा विभाग, - लखनऊ वि. विद्यालय, लखनऊ |
दो शब्द ------ कविवर श्री रामदेव लाल 'विभोर' महामंत्री, काव्य कला मंदिर, लखनऊ |
पूर्व कथन व आभार .... लेखक
मंगलाचरण ----
१.
माँ वाणी! माँ सरस्वती |
माँ शारदे |
अगीत को नवीन सुरलय ताल का
संसार दे |
नए नए स्वर, छंद-
नवल विचार दे |
यह अगीत काव्य ,
जन जन में विस्तार पाए ;
मूढमति श्याम का -
माँ जीवन सुधार दे ||
२.
हे अगीत ! तुम निहित गीत में,
गीत तुम्हारे अंतर स्थित |
नए छंद , नव भाव, नवल स्वर ,
ले अवतरित हुए हे चेतन !
वंदन हित वाणी-विनायकौ ,
नमन श्याम का हो स्वीकार ||
विषय - अनुक्रमणिका ....
प्रथम अध्याय ....अगीत: एतिहासिक पृष्ठभूमि व् परिदृश्य ..
द्वितीय अध्याय ....अगीत : क्यों व क्या है एवं उसकी उपयोगिता ..
तृतीय अध्याय ...अगीत : वर्त्तमान परिदृश्य व भविष्य की संभावना ..
चतुर्थ अध्याय ....अगीत छंद व उनका रचना विधान ..
पंचम अध्याय ....अगीत की भाव संपदा ..
षष्ठ अध्याय ..... अगीत का कला पक्ष ......
(----क्रमश ... प्रस्तावना --.)
1 टिप्पणी:
सुन्दर समर्पण..आगे की प्रतीक्षा रहेगी।
एक टिप्पणी भेजें