....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
१- चित्र समाचार -१.--नई रचनाशीलता --ज्ञानरंजन-..साहित्यकार......
--रचनाशीलता सदा ही नई होती है -ये नयी रचनाशीलता क्या होती है....... -----जितने बड़े लोग हैं सब विफल हैं,कबीर और मुक्तिबोध नाकाम हैं|.......हिन्दू समाज तुलसी दास को ही मानता है कबीर को नहीं... .....अर्थात लेखक के अनुसार कबीर बड़े हैं ..मुक्तिबोध बड़े हैं ..तुलसी नहीं
---और कबीर को कौन नहीं मानता ??साहित्यकार जी .... इस भारत में ..हिन्दू-मुसलमान सब मानते हैं...कबीर साहित्य के अनूठेपन की विरुदावलियाँ गाई जाती हैं.. तुलसी, तुलसी हैं- कबीर, कबीर .......
--- अब आप ही सोचिये | कैसी हिन्दी की, साहित्य की , देश-समाज की सेवा है यह ...
चित्र-समाचार -२-.( आलेख-कांतिकुमार जैन , पूर्व-प्राध्यापक, लेखक )-. मल्होत्रा साहब के लिए शुद्ध हिन्दी गिद्ध है वह भी भुस से भरा हुआ .....
---और उन्हीं महोदय को ..गुलेरी जी की हिन्दी कहानी ...में लाणी होरा ... के अर्थ के लिए जर्मन तक जाना पड़ा ..होरा से ...जर्मन हर का अर्थ जोडने हेतु....
---- जबकि ऋग्वेद...अथर्व वेद में ...हारा शब्द ...आदि-शक्ति ..महामाया के लिए प्रयुक्त है ....... हारा ...राधा, सीता ,लक्ष्मी अर्थात आदि- शक्ति--आत्मा, आत्मशक्ति तथा ....हरे ..हरी ..शीघ्रता से प्रसन्न होने वाले देव....इसीलिये हरे कृष्ण ..हरे राम...कहाजाता है...अर्थात शक्ति से युक्त देवता ...श्याम या राम ....अतः होरा ..स्त्री के हेतु प्रयोग है...लाणी -होरा = लावनी, लोनी, सलोनी, सुन्दर, लाडली , प्रिय --- शक्ति-रूप, आदरणीय स्त्री-पत्नी-प्रेमिका ...... हर . हरें ....
----हर हिटलर शब्द हिटलर ने हरे राम..हरे कृष्ण से लिया होगा ...जर्मन लोग वैदिक साहित्य के ज्ञाता थे...
----शुद्ध हिन्दी और अच्छी हिन्दी में क्या अंतर है....क्या शुद्ध वस्तु अच्छी नहीं होगी ...क्या अर्थ निकालेंगे आप इस कथन का.....
समाचार-चित्र -३- अब एक व्यंगकार की भाषा का हिन्दी पर व्यंग्य देखिये ....हिन्दी राजनीति के बंदरों के हाथ पड गया वह उस्तरा है .जिससे खेलता हुआ वह सारे राष्ट्र को लुहूलुहान कर रहा है....
----अर्थात लेखक के अनुसार हिन्दी एक उस्तरा है, धार वाला हथियार ....बाल बनाने हेतु एक अस्त्र....
---वाह! क्या उपाधि है हिन्दी की ...व्यर्थ के व्यंग्य-आलेख लिखते लिखते उसी प्रकार की अनुपयुक्त भाषा भी होजाती है.....
---तभी तो कबीर ने कहा ....
"ह्रदय तराजू तौल कर तब मुख बाहर आनि |"...(..तब तू लिखना ठानि ....)......
हिन्दी दिवस पर ...ये कौन सी भाषा है, कैसी राय है ...हिन्दी के लिए ....
कुछ आलेखों में हिन्दी के विषय में विविध मत प्रस्तुत किये गए
हैं | देखिये ...अच्छी भावना होते हुए भी किस प्रकार भाषा की गहन
भाव-समझ न होते हुए किस प्रकार के नकारात्मक भाव संप्रेषित होते हैं....चिरत-समाचार-१-तुलसी बड़े या कबीर ? |
१- चित्र समाचार -१.--नई रचनाशीलता --ज्ञानरंजन-..साहित्यकार......
--रचनाशीलता सदा ही नई होती है -ये नयी रचनाशीलता क्या होती है....... -----जितने बड़े लोग हैं सब विफल हैं,कबीर और मुक्तिबोध नाकाम हैं|.......हिन्दू समाज तुलसी दास को ही मानता है कबीर को नहीं... .....अर्थात लेखक के अनुसार कबीर बड़े हैं ..मुक्तिबोध बड़े हैं ..तुलसी नहीं
---और कबीर को कौन नहीं मानता ??साहित्यकार जी .... इस भारत में ..हिन्दू-मुसलमान सब मानते हैं...कबीर साहित्य के अनूठेपन की विरुदावलियाँ गाई जाती हैं.. तुलसी, तुलसी हैं- कबीर, कबीर .......
--- अब आप ही सोचिये | कैसी हिन्दी की, साहित्य की , देश-समाज की सेवा है यह ...
समाचार चित्र-२-शुद्ध हिन्दी ,भुस व गिद्ध |
चित्र-समाचार -२-.( आलेख-कांतिकुमार जैन , पूर्व-प्राध्यापक, लेखक )-. मल्होत्रा साहब के लिए शुद्ध हिन्दी गिद्ध है वह भी भुस से भरा हुआ .....
---और उन्हीं महोदय को ..गुलेरी जी की हिन्दी कहानी ...में लाणी होरा ... के अर्थ के लिए जर्मन तक जाना पड़ा ..होरा से ...जर्मन हर का अर्थ जोडने हेतु....
---- जबकि ऋग्वेद...अथर्व वेद में ...हारा शब्द ...आदि-शक्ति ..महामाया के लिए प्रयुक्त है ....... हारा ...राधा, सीता ,लक्ष्मी अर्थात आदि- शक्ति--आत्मा, आत्मशक्ति तथा ....हरे ..हरी ..शीघ्रता से प्रसन्न होने वाले देव....इसीलिये हरे कृष्ण ..हरे राम...कहाजाता है...अर्थात शक्ति से युक्त देवता ...श्याम या राम ....अतः होरा ..स्त्री के हेतु प्रयोग है...लाणी -होरा = लावनी, लोनी, सलोनी, सुन्दर, लाडली , प्रिय --- शक्ति-रूप, आदरणीय स्त्री-पत्नी-प्रेमिका ...... हर . हरें ....
----हर हिटलर शब्द हिटलर ने हरे राम..हरे कृष्ण से लिया होगा ...जर्मन लोग वैदिक साहित्य के ज्ञाता थे...
लाणी होरा और हर |
----शुद्ध हिन्दी और अच्छी हिन्दी में क्या अंतर है....क्या शुद्ध वस्तु अच्छी नहीं होगी ...क्या अर्थ निकालेंगे आप इस कथन का.....
समाचार-चित्र -३- अब एक व्यंगकार की भाषा का हिन्दी पर व्यंग्य देखिये ....हिन्दी राजनीति के बंदरों के हाथ पड गया वह उस्तरा है .जिससे खेलता हुआ वह सारे राष्ट्र को लुहूलुहान कर रहा है....
----अर्थात लेखक के अनुसार हिन्दी एक उस्तरा है, धार वाला हथियार ....बाल बनाने हेतु एक अस्त्र....
---वाह! क्या उपाधि है हिन्दी की ...व्यर्थ के व्यंग्य-आलेख लिखते लिखते उसी प्रकार की अनुपयुक्त भाषा भी होजाती है.....
---तभी तो कबीर ने कहा ....
"ह्रदय तराजू तौल कर तब मुख बाहर आनि |"...(..तब तू लिखना ठानि ....)......
3 टिप्पणियां:
पता नहीं चलता, क्या क्या लिख देते हैं सब।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति .डॉ .श्याम गुप्त जी .बधाई स्वीकार करें .
ram ram bhai
शनिवार, 15 सितम्बर 2012
देश मेरा - हो गया अकविता ,
देश मेरा -
धन्यवाद पांडे जी व वीरेंद्र जी.....
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