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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

मंगलवार, 25 सितंबर 2012

.जंगल में मोर नाचा....विश्व हिन्दी सम्मेलन..... जोहान्सबर्ग -अफ्रीका में .. डा श्याम गुप्त

                                             ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...



विश्व  हिन्दी सम्मेलन..... जोहान्सबर्ग -अफ्रीका में ...जंगल में मोर नाचा किसी ने न देखा.


                            क्या विश्व हिन्दी सम्मलेन...भारत से बाहर विदेशों में होना अनिवार्य है......जंगल में मोर नाचा किसी ने न देखा.....अरे सारे विश्व हिन्दी सम्मलेन भारत में ही हों तो भारतीय भी हिन्दी की महत्ता समझें ....विदेशी क्या करेंगे हिंदी की महत्ता समझ कर ...क्यों समझें ...हम तो पहले अपनी भाषा की महत्ता समझ कर उसे प्रयोग में लाएं ......यहाँ तो सारा युवा समाज...तथाकथित पढ़ा लिखा, प्रवुद्ध युवा  समाज ..अंग्रेज़ी में खाता--पीता--उठता-बैठता, सांस लेता है ...और आप चले हैं हिन्दी सम्मलेन विदेशों में करने ......
                           यह सब कुछ तथाकथित वर्गों, गुटों के साहित्यकारों ( वे साहित्यकार भी कहाँ हैं ..पत्रकार, संपादक, यानी अखबार नवीस,  नेता , गुटबाज़ हैं ) विदेश घूमने का आयोजन बनाया हुआ है | अब देखिये ...वहाँ बहुत से विदेशी, स्थानीय भारतवंशी  व भारतीय विद्वान भी गए होंगे ( पता नहीं गए भी हैं ..बुलाये गए  भी हैं या नहीं ) परन्तु समाचार, विचार  व भाषण सिर्फ अखवार बालों  ---  आलोचक, संपादक, पत्रिकाओं वालों के छपे हैं ....किसी बड़े साहित्यकार के नहीं | इन सब के विचार तो हम भारत में ही सुनते रहते है, सुनते आये हैं वर्षों से  बिना किसी प्रभाव के... जब हम घिसे-पिटे विचारों ---आधा भरे गिलास से ही संतुष्टि की भावना करेंगे तो ऐसे सम्मलेन से हम क्या आशा करें ?
                               और   हिन्दी का सुखद भविष्य सुनिश्चित हो .....तो कौन करेगा सुनिश्चित, विदेशों में आयोजन से कैसे होगा सुनिश्चित ..... क्या हम विदेशियों  या योरोप-अमेरिका से आशा कर रहे हैं कि प्रत्येक बात की भांति ही.......पहले वे हिन्दी का प्रयोग प्रारम्भ करें तब हम भी नक़ल कर लेंगे  ......

1 टिप्पणी:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

हिन्दी को जब भी मिले, सुखद भविष्य मिले..