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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

सोमवार, 8 अक्टूबर 2012

श्याम स्मृति- ..असत्य की उत्पत्ति ..एवं हास्य ...

                                         ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...

 


                                     
 
श्याम स्मृति- ..असत्य की उत्पत्ति ..एवं हास्य ...
       असत्य की उत्पत्ति के चार मूल कारण हैं –क्रोध, लोभ, भय एवं हास्य | वास्तव में तो मानव का अंतःकरण असत्य कथन एवं वाचन नहीं करना चाहता परन्तु इन चारों के आवेग में वायवीय मन बहने लगता है और सत्य छुप जाता है |
       क्रोध व लोभ तो सर्व-साधारण के लिए भी जाने-माने संज्ञेय और निषेधात्मक अवगुण हैं; भय वस्तु-स्थितिपरक अवगुण है परन्तु हास्य ...सर्वसाधारण के संज्ञान में अवगुण नहीं समझा जाता है अतः वह सबसे अधिक असत्य दोष-उत्पत्तिकारक है |
        हास्य व व्यंग्य के अत्यधिक प्रस्तुतीकरण से समाज में असत्य की परम्परा का विकास, प्रमाणीकरण एवं प्रभावीकरण होता है जो विकृति उत्पन्न करता है | महत्वपूर्ण विषय भी जन- सामान्य द्वारा  ‘..अरे, यह तो यूँही मजाक की बात है’ के भाव में बिना गंभीरता से लिए अमान्य कर दिया जाता है | इसलिए इस कला का साहत्यिक-विधा के रूप में सामान्यतः एवं  बहुत अधिक प्रयोग नहीं होना चाहिए | 
        इसीलिये हास्य व व्यंग्य को विदूषकता व मसखरी की कोटि में निम्न कोटि की कला व साहित्य माना जाता है |

1 टिप्पणी:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

हास्य का वैज्ञानिक आधार..