....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
यूं तो बहुत पहले से ही आधुनिका नारियां, नारी –स्वतन्त्रता का अर्थ -- मनमानी ड्रेस पहनना व अपनी इच्छानुसार कहीं भी ,कभी भी घूमने फिरने की स्वतंत्र जीवन-चर्या को कहती रही हैं | परन्तु अभी हाल में ही ‘निर्भया’ बलात्कार काण्ड के पश्चात जहाँ देखें,जिसे देखें.. अपनी-अपनी कहता\कहती –चिल्लाता/चिल्लाती घूम रहा है, पुरुषों पर कठोर बंधन, आचरण, पुरुषवादी सोच, घिनौने विचार, समाज की रूढ़ियाँ –संस्कृति आदि को गरियाना...पुराण-पंथी बताना जोर-शोर से चल रहा है | यद्यपि कहीं कहीं , किसी-किसी कोने से कुछ विपरीत विचार भी आजाते हैं परन्तु वे ‘नक्कारखाने में तूती की आवाज़’ की भांति रह जाते हैं| तमाम विचार, टीवी शो, वार्ताएं, ब्लाग्स, आलेख ,महिला-कार्यकर्ताओं, महिला संगठनों , युवा संगठनों, महिलाओं के लिए महिलाओं-पुरुषों द्वारा गठित एनजीओ आदि के विचार ,देखने पढ़ने सुनने के पश्चात मेरे मन में भी कुछ विचार उठे ,( हो सकता है किसी आलेख आदि पढ़कर आये हों ) -----
1-पहले... गाँव के स्कूल में लड़कियां साड़ी-कमीज़ व लडके पायजामा-कमीज़ या नेकर-कमीज़ पहन कर जाया करते थे ....शहरों के स्कूलों –कालेजों में लड़के पेंट और कमीज पहनते थे और लडकिया सलवार- कमीज और दुपट्टा पहनती थीं....
---------- लड़के तो अभी भी पेंट और कमीज पहनते हैं पर लडकियाँ ...स्कर्ट-टॉप पहन कर स्कूल जाती हैं...जो कि समय के साथ-साथ हर ओर से छोटी होती जा रही है...
2.पहले... विविध पार्टियों अदि में ..पुरुष ...पेंट, कमीज और कोट पहन कर जाते थे और महिलायें साड़ी के साथ पूरी बांह का ब्लाउज और ऊपर से कार्डिगन-शाल आदि या शलवार-सूट-दुपट्टा पहन कर जाती थीं.....
--------पुरुष की ड्रेस तो आज भी वही है....पर महिलाओं की ड्रेस में साडी और ब्लाउज के बीच दिन प्रतिदिन दूरी बढ़ती जा रही है....साडी ऊपर से नीचे जा रही है और ब्लाउज नीचे से ऊपर और ऊपर से नीचे आ रहा है, पीठ पर से कपड़ा बचाया जा रहा है और नयी अधुनिकाएं तो जींस-नाभि दर्शना टॉप या छोटी होती हुई स्कर्ट-टॉप में जैसे-- कि औरतें तन ढकने के लिए नहीं बल्कि तन-बदन दिखाने के लिए कपडे पहनती हों .....??
३-.पहले ...दफ्तर में पुरुष कर्मचारी की ड्रेस पेंट कमीज और कोट होती थी और महिला-कर्मचारियों की साडी- ब्लाउज या फिर सलवार-कमीज कार्डिगन के साथ होती थी....
---------पुरुषों की तो ड्रेस अब भी वही है पर महिलाओं की ड्रेस में एक पीस के कपडे आ गए हैं जो कि वक्षस्थल से लेकर कमर तक नितम्बों से कुछ नीचे तक ही पहने जाते हैं....या फिर स्कर्ट और टॉप जो कि क्रमश छोटे होते जा रहे हैं....
परंपरागत साड़ियाँ |
पुरुष की शर्ट की कालर आज भी ऊपर से ही शुरू होती है...और बाहें....वहीँ तक हैं ( कुछ अमरीकी-परस्त युवा व प्रौढ़ भी बरमूडा-कीमती बनियान पहन कर भी घूमने लगे हैं ताकि कहीं वे कम कपडे पहनने की आधुनिकता में लड़कियों से पीछे न रह जायं )....जबकि स्त्रियों की ड्रेस ऊपर से नीचे आती जा रही है...और नीचे से ऊपर जाती जा रही है.....और ब्लाउज स्लीव लेस से गुजर कर और भी ज्यादा डीप कट, लो-कट, ब्रेस्ट-दर्शना, ब्रा-दर्शना , बेकलेस .. बनने लगे हैं...ताकि आगे –पीछे नंगा बदन -नंगी पीठ अधिकाधिक दिखाए दे पहले महिला की ब्रा दिखाई देना एक बहुत बड़ी व अशोभनीय बात मानी जाती थी और अब एक फेशन बनगयी है |
--------यक्ष-प्रश्न यह है कि युगों-सदियों से जिस भारत जैसे देश में शर्म औरत का गहना कहा जाता था...महिलायों –लड़कियों का शरीर दिखाना उचित नहीं माना जाता था, असभ्यता, अशालीनता, अशोभनीय माना जाता था ... उस देश में ऐसा क्या हुआ कि औरत फैशन के नाम पर दिन पर दिन नंगी होती जा रही है, और पुरुष के विभिन्न फैशन के कपडे भी पूरे शरीर को ढंकने वाले होते हैं|..क्यों.... क्या इसके कुछ लाभ भी हैं जो मैं नहीं समझ पा रहा हूँ .........??
क्या महिलायों को पुरुष के सामने चारे की भाँति परोसा जा रहा है( या वे स्वयं, स्वयं को परोसना चाहती हैं ) और पुरुष को महिलाओं की नज़रों से छिपाकर रखना इसका उद्देश्य है.....ताकि महिलायें बिगड़ें नहीं |
---- सभी चित्र गूगल साभार ....
13 टिप्पणियां:
अधिकार और मर्यादा, दोनों ही साथ साथ चलें।
यही तो.....
साइंस ब्लॉग पर सितारों की ज़िन्दगी का पौराणिक संदर्भ आपने मुहैया करवाया .आभार .
ram ram bhai
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बुधवार, 30 जनवरी 2013
ये आलम है दु-भाँत का
http://veerubhai1947.blogspot.in/
सबसे बड़ी बात यही है कि बाजार ने विज्ञापन जगत के माध्यम से आधुनिकता को पहनावे से जोड़ दिया और हमारा समाज बिना विचारे उसी को सच मान कर उसका अनुसरण करते जा रहें हैं बिना यह विचार करे कि आधुनिकता विचारों में होनी चाहिए ना कि पहनावे में !
Virendra Kumar Sharma ने आपकी पोस्ट " किस्सा ड्रेस-कोड का . ..तब और अब ...... " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:
एक सहज परिवर्तन है सलमान या कोई भी और खान सिक्स पेक एब्स दिखाए या शर्ट उतारे यह उसका निजी मामला है .शरीर सौश्ठव के अपने प्रतिमान है .औरत का भी यही निजी
मामला है वह कितनी स्किन खुली या बंद रखे .
" क्या महिलायों को पुरुष के सामने चारे की भाँति परोसा जा रहा है( या वे स्वयं, स्वयं को परोसना चाहती हैं ) और पुरुष को महिलाओं की नज़रों
से छिपाकर रखना इसका उद्देश्य है.....ताकि महिलायें बिगड़ें नहीं |"-डॉ श्याम गुप्ता
आखिर मर्द इवोल्व क्यों नहीं कर रहा है ?सबका अपना आत्म विश्वास और खुद पे भरोसा अलग अलग है .कौन सी सदी की बात कर रहें हैं आप ?
अपना नजरिया दुरुस्त क्यों नहीं करते ऐसे मर्द जिन्हें यथा -स्थिति से प्यार है ?
गनीमत है आपने लिबास को बलात्कार से नहीं जोड़ा .खूब सूरत बदन से आप इतना आतंकित क्यों रहते हैं ?खूब सूरती समाज के लिए ही है
.ईश्वर की इनायत है .वह तो सारे माहौल को सुन्दर बना रही है सिर्फ अपने होने से ,जिसे आप रूप गर्विता समझ रहे हैं .
सजना धजना भी .पुरुष भी सज धज करता है महिला भी .यह होता आया है सौन्दर्य की कोई शाश्वत परिभाषा नहीं है न शरीर सौष्ठव के
निर्धारित प्रतिमान हैं .बदलते रहें हैं बदलेंगे .
अब एक ख़ास BMI से कम बॉडी मॉस इंडेक्स वाली युवतियां सौन्दर्य प्रतियोगिता में भाग नहीं ले सकती .
क्या स्वयम्वर में पुरुषं की नुमाइश होती थी जो पूरी सज धज के साथ उतरते थे अखाड़े में ?
गले के नीचे नहीं उतरती आपकी प्रस्तावना .
चटकारे लेके ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर ......नख शिख वर्रण करने मेंआप "बिहारी "बन गए हैं .क्या पारखी दृष्टि पाई है आँखों में इंच टेप
लिए फिरते हैं आप .
सहे कहा पूरण जी...धन्यवाद
वीरेन्द्र जी....
१ नहीं- सलमान का भी कपडे उतारना अशोभनीय है जैसे स्त्रियों का वैसे ही ---अन्यथा यदि यह सिर्फ व्यक्तिगत मामला है तो फिर क्या आपका कानून सड़क पर पूरे नंगे या नंगी घूमने की इजाज़त देता है ?
२. एवोल्व का कपड़े पहनने से लेना-देना नहीं है यही तो कहा जारहा है ...क्या मर्द ठीक कपडे पहनते हैं तो वे महिलाओं से कम एवोल्व हुए हैं ....क्या उट पटांग कह रहे हैं हुज़ूर ..
३---आप समझे ही नहीं जिसे आप नकार रहे हैं वास्तव में अर्थ वही निकलता है ...समझिये गहरे जाकर...
4---बिलकुल सही वेश्याएं भी माहौल को सुन्दर ही बनाती हैं ....दुनिया क्यों ऑब्जेक्ट करती है...
५----सही कहा प्रतिमान बदलते रहते हैंपर सही दिशा में ... पाषाण-युग में हम नंगे रहा करते थे फिर कपडे क्यों पहनने लगे अब फिर वाहें जाने का इरादा है..
6---कहने की बात तो यही है पुरुष भी सज-धज कर रहा है पर पूरे कपड़ों में ..उतारकर नहीं
7--- सौन्दर्य प्रतियोगिता की आवश्यकता ही क्या है ...क्या सुन्दर-माल को बेचना है बाज़ार में.. और स्वयंबर क्या सौन्दर्य प्रतियोगिता होती थी पता भी है कुछ स्वयंबर की प्रथा के बारे में ...
8---क्या आप चाहते हैं कि अब कोई और 'बिहारी' पैदा ही न हो..
जय बोल बिहारी लाल की .श्री बांके बिहारी लाल की .
हमें यहाँ पर अपना द्रिष्ठिकों थोडा निष्पक्ष करना होगा। हमें यह नहे भूलना चाहिए कि आज एक स्त्री जिस रूप में भी जिस भी मोड़ पर खडी है उसे वहां तक पहुचाया किसने ? दुसरे की गिरेबान में झाँकने से पहले पुरुष प्रधान समाज को अपने गिरेवान में झांकना चाहिए !
धन्यवाद शर्मा जी....जय बांके बिहारी के...
जैसे की हमारे बड़े बुजुर्ग कह गए हैं अपनी मर्यादा में रहो, वो अत्यंत अवश्य और जरुरी है, जय बांके बिहारी लाल. राधे-राधे
धन्यवाद गोदियाल जी....निश्चय ही हमें निष्पक्ष दृष्टिकोण रखना चाहिए ..
---"आज एक स्त्री जिस रूप में भी जिस भी मोड़ पर खडी है उसे वहां तक पहुचाया किसने ?"
.... किसने ??? यही तो यक्ष-प्रश्न है.. क्या आप इसे सिर्फ पुरुष का दोष मानते हैं..क्यों ..क्या सबूत हैं आपके पास ? क्या किसी भी सामाजिक संरचना की सृष्टि या बदलाव में अकेला पुरुष सक्षम है??
--- समाज कब सिर्फ पुरुष-प्रधान रहा है ..बिना स्त्री के कब समाज चलता है... दुष्ट, दुर्गुण-प्रधान,पैशाचिक वृत्ति के स्त्री व पुरुष दोनों ही सदा ही होते आये हैं परन्तु उन्हें जन्म व उचित-अनुचित पालन पोषण कौन देता है... ...नारी ..
धन्यवाद अरुण जी ...सही कहा ...मर्यादा दोनों के लिए ही आवश्यक है ..एक हाथ से ताली कब बजती है...
-- यदि बांके-बिहारी की जय बोलनी है तो राधा रानी की भी बोलनी ही होगी ...नास्ति कृष्णार्चनं , राधार्चनम बिना....
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