क्या इन्डियन सायकाट्रिस्ट सोसायटी की प्रेसीडेंट की बात कोई भी मायने नहीं रखती ... क्या वास्तव में यह बात बिलकुल सोचने योग्य नहीं है जो अन्य सायकाट्रिस्ट लोगों ने एक दम उसे खाप से जोड़ दिया ...एक मनोवैज्ञानिक की बात का कुछ तो अर्थ हो सकता है |
ज़रा ध्यान से सोच कर देखें तो इस बात में कुछ तो सच्चाई है जो एक अनुभवी चिकित्सक-मनोवैज्ञानिक ने अनुभव किया | निश्चय ही इससे ये घटनाएँ समाप्त नहीं तो कम अवश्य होंगीं| अन्य उपाय तो अपने स्थान पर किये ही जाने चाहिए | .
7 टिप्पणियां:
कहती डाक्टर इंदिरा, कारण बड़े सटीक ।
जल्दी शादी है सही, है उपाय यह नीक ।
है उपाय यह नीक, भूख ले जाय रेस्तराँ ।
सोवे टूटी खाट, नींद से व्यक्ति अधमरा ।
पॉकेट में है माल, भूख काया ना सहती ।
खाए जूठा भात, बुद्धि भी कुछ ना कहती ।।
अनुभवी चिकित्सक ने जो कहा उससे मै सहमत हूँ ,मैंने भी इस बिषय पे सोचा डाक्टर इंदिरा शर्मा जी की बाते तर्कसंगत लगी ,शुभकामनाये
"आधुनिक विमर्श की कोई चौहद्दी नहीं है .आप परम्परा पर अंगद की लात नहीं मार सकते .छोटे शहर जो कमोबेश परम्परा से बंधे हैं आज भी वहां जीवन अपेक्षया सुरक्षित है .दिल्ली जैसे महा नगरों
की कोई खसूसियत कोई चेहरा नहीं बचा है ,परम्परा गत समाज के लोग नियम बनाके उनका पालन करते हैं .वहां नियम टूटने का मतलब हाईकोर्ट जाना नहीं है .परात्परा है परम्परा .जो परे से भी परे
है ,दूर तक जाती है पीढ़ियों के पार वह परम्परा है .जो अपने इस्तेमाल में व्यापक है सर्वव्यापी है वह परमपरा है .परम्परा गत छोटे शहर न केवल सुरक्षित हैं उनका एक चेहरा भी है .
मनोविज्ञान के पूर्व राष्ट्रीय प्रोफ़ेसर रहे डॉ इन्द्रजीत सिंह मुहार ने कहा -इंदिरा जी कौन से ज़माने की बात कर रहीं हैं .माँ बाप के कौन से नियंत्रण की बात कर रहीं हैं .अच्छी ही रहता है माँ बाप के
चंगुल से निकलना बेटे बहुओं का वरना शादी एक कलह में बदल जाती है .विस्फोटक सामग्री को पास पास रखना ही क्यों है .
धन्यवाद ..प्रवाह जी ...----समय के प्रवाह में हमें इतना भी नहीं बहते जाना चाहिए कि प्रपात का पता ही न चले...
---धन्यवाद रविकर जी .... क्या खूब, कारण बड़े सटीक ..आप तो भई कुंडली -विशेषज्ञ होगये हैं....
सोचने योग्य बात है यह सही में |
Tamasha-E-Zindagi
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भई वीरेन्द्र जी ये कौन सी भाषा है हम तो पहचान ही नहीं पा रहे ..सर कहीं पैर कहीं ...कुछ कहना है तो स्पष्ट कहा करें गाथा नहीं ...
---इंदिरा जी तो आज के जमाने की बात कह रही हैं...आप कहाँ से भूतपूर्व ले आये....
धन्यवाद तुषार जी.... बात ..प्रत्येक दृष्टिकोण से सोचने योग्य तो होनी ही चाहिए ...न कि एक दम खाप...खाप जैसी घिसी-पिटी कहाबत ...
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