....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
प्रत्येक क्षेत्र में यही स्थिति है ..सिर्फ दलहन में ही क्या ....... अन्न ..गेहूं, चावल, खाद्य-तेल, अन्य कपडे-जूते आदि मानव प्रयोग की वस्तुएं व खाद्य-पदार्थ, जल, सिंचाई, तकनीकी , शिक्षा , कल्चर , खेल ...हर क्षेत्र में नक़ल की आयातित -संस्कृति चल रही है और यह सब है धंधेबाजी हेतु -- कमीशनखोरी , भ्रष्टाचार के कारण .... और अधिक ..और अधिक कमाई हेतु ....
----- देखिये एक आँख खोलने वाला विचारणीय आलेख .......
4 टिप्पणियां:
आभार आदरणीय ।।
बेहतर है तकनीक पर, लगे कमीशन नीक ।
करते नित्य प्रपंच छल, दावे सकल अलीक ।
दावे सकल अलीक, गले ना दलिया दलहन ।
लगा रहे जो तेल, पूर ना पड़ता तिलहन ।
नीति नियम में दोष, तंत्र षड्यंत्री रविकर ।
खाली होता कोष, होय दिन कैसे बेहतर ।।
सच है, कहीं तो गर्व हो हमें।
upyogi jankari"til til kr jivan hai marta,bn ghani kolhu se darta,niti niyam ki bat n kije,hai sarkari jivndarta....."
धन्यवाद --रविकर , पांडे जी
---आभार मधु सिंह जी ..सुन्दर कविता ...
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