....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
नियम का भी कोई नियम होता है दोस्तो,
कि नियम को नियमों में न बांधा जाए |
अगरचे चाहते हैं दिल से निकले गीत-ग़ज़ल,
बहर वज्न, गणों की अति से न लादा जाए |
अनुशासन है शासन के पीछे चलना,
शर्त है कि जन-आशा को न भुलाया जाए |
नियम की अनुशासन की एक हद होती है,
कि उसे तानाशाही से न चलाया जाए ||
कह रहा है गीत-ग़ज़ल, हर खासो-आम यहाँ ,
'जन-सरोकार से मगर, श्याम' संवारा जाए |
नियम का भी कोई नियम होता है दोस्तो,
कि नियम को नियमों में न बांधा जाए |
अगरचे चाहते हैं दिल से निकले गीत-ग़ज़ल,
बहर वज्न, गणों की अति से न लादा जाए |
अनुशासन है शासन के पीछे चलना,
शर्त है कि जन-आशा को न भुलाया जाए |
नियम की अनुशासन की एक हद होती है,
कि उसे तानाशाही से न चलाया जाए ||
कह रहा है गीत-ग़ज़ल, हर खासो-आम यहाँ ,
'जन-सरोकार से मगर, श्याम' संवारा जाए |
2 टिप्पणियां:
बहुत ही मूल प्रश्न..कैसा हो हमारा स्वरूप..
सही कहा पांडे जी .... धन्यवाद ....
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