....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
हनुमत कृपा --
(कुण्डली -छंद )
पवन तनयसंकट हरण मारुति सुत अभिराम ,
अन्जनि पुत्र सदा रहें ,स्थित हर घर ग्राम ।
स्थित हर घर ग्राम , दिया वर सीता माँने ,
होंयअसंभव काम ,जो नर तुमको सम्माने ।
राम दूत ,बल धाम 'श्याम जो मन से ध्यावे ,
हों प्रसन्न हनुमान ,कृपा रघुपति की पावे ।।
निश्चयात्मक बुद्धि ,मन प्रेम प्रीति सम्मान,
विनय करें ,तिनके सकल कष्ट हरें हनुमान ।
कष्ट हरें हनुमान ,पवन सुत अति बल शाली ,
जिनके सम्मुख टिके न कोई दुष्ट कुचाली ।
रामानुज के सखा ,दूत प्रियभक्त ,राम के ,
बिगडे काम बनाएं पवन सुत सभी श्याम के ॥
प्रार्थना
(घनाक्षरी -मनहरण )
दुर्गम जगत के हों कारज सुगम सभी ,
बस हनुमत गुण गान नित करिए ।
सिन्धुपारि करि,सिय सुधि लाये लंकजारि,
ऐसे बज़रंग बली का ही ध्यान धरिये ।
करें परमार्थ सतकारज निकाम भाव ,
ऐसे उपकारी पुरुषोत्तम को भजिये ।
रोग दोष दुःख शोक ,सब का ही दूर करें ,
श्याम के हे राम दूत !,अवगुण हरिये ॥
(घनाक्षरी -जल हरण )
बिना हनुमत कृपा , मिलें नहीं राम जी ,
राम भक्त हनुमान चरणों में ध्यान धर ।
रिद्धि -सिद्धि दाता नव-निधि के प्रदाता प्रभु ,
मातु जानकी से मिले ऐसे वरदानी ,वर ।
राम ओ लखन से मिलाये सुग्रीव तुम ,
दौनों पक्ष के ही दिए संकट उबार कर ।
संकट हरण हरें , संकट सकल जग ,
श्याम अरदास करें , कर दोऊ जोरि कर॥
(देव -घनाक्षरी )
बाल ब्रह्मचारी , पवन पुत्र जब हांक भरें ,
कांपें दुष्ट और कुविचारी, थर थर थर ।
सारे लोक में हें तभी पूज्य अनजानी के लाल ,
रहते हें सदा हर ग्राम- नगर घर घर ।
चाहे कलियुग हो या हो शनि ,दुष्ट ग्रह कोई ,
सुमिरे पवन सुत , भागें सर सर सर ।
काल सम कराल विकराल ,रवि गाल -धर ,
श्याम के निवारें शोक दोष , हर हर कर ॥
हनुमत कृपा --
(कुण्डली -छंद )
पवन तनयसंकट हरण मारुति सुत अभिराम ,
अन्जनि पुत्र सदा रहें ,स्थित हर घर ग्राम ।
स्थित हर घर ग्राम , दिया वर सीता माँने ,
होंयअसंभव काम ,जो नर तुमको सम्माने ।
राम दूत ,बल धाम 'श्याम जो मन से ध्यावे ,
हों प्रसन्न हनुमान ,कृपा रघुपति की पावे ।।
निश्चयात्मक बुद्धि ,मन प्रेम प्रीति सम्मान,
विनय करें ,तिनके सकल कष्ट हरें हनुमान ।
कष्ट हरें हनुमान ,पवन सुत अति बल शाली ,
जिनके सम्मुख टिके न कोई दुष्ट कुचाली ।
रामानुज के सखा ,दूत प्रियभक्त ,राम के ,
बिगडे काम बनाएं पवन सुत सभी श्याम के ॥
(घनाक्षरी -मनहरण )
दुर्गम जगत के हों कारज सुगम सभी ,
बस हनुमत गुण गान नित करिए ।
सिन्धुपारि करि,सिय सुधि लाये लंकजारि,
ऐसे बज़रंग बली का ही ध्यान धरिये ।
करें परमार्थ सतकारज निकाम भाव ,
ऐसे उपकारी पुरुषोत्तम को भजिये ।
रोग दोष दुःख शोक ,सब का ही दूर करें ,
श्याम के हे राम दूत !,अवगुण हरिये ॥
(घनाक्षरी -जल हरण )
बिना हनुमत कृपा , मिलें नहीं राम जी ,
राम भक्त हनुमान चरणों में ध्यान धर ।
रिद्धि -सिद्धि दाता नव-निधि के प्रदाता प्रभु ,
मातु जानकी से मिले ऐसे वरदानी ,वर ।
राम ओ लखन से मिलाये सुग्रीव तुम ,
दौनों पक्ष के ही दिए संकट उबार कर ।
संकट हरण हरें , संकट सकल जग ,
श्याम अरदास करें , कर दोऊ जोरि कर॥
(देव -घनाक्षरी )
बाल ब्रह्मचारी , पवन पुत्र जब हांक भरें ,
कांपें दुष्ट और कुविचारी, थर थर थर ।
सारे लोक में हें तभी पूज्य अनजानी के लाल ,
रहते हें सदा हर ग्राम- नगर घर घर ।
चाहे कलियुग हो या हो शनि ,दुष्ट ग्रह कोई ,
सुमिरे पवन सुत , भागें सर सर सर ।
काल सम कराल विकराल ,रवि गाल -धर ,
श्याम के निवारें शोक दोष , हर हर कर ॥
2 टिप्पणियां:
जय जय जय जय श्रीहनुमान।
धन्यवाद पांडेजी एवं भदोरिया जी.....जय हनुमान ..
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