....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
मेरे शीघ्र प्रकाश्य ब्रजभाषा काव्य संग्रह ..." ब्रज बांसुरी " ...की ब्रजभाषा में रचनाएँ गीत, ग़ज़ल, पद, दोहे, घनाक्षरी, सवैया, श्याम -सवैया, पंचक सवैया, छप्पय, कुण्डलियाँ, अगीत, नव गीत आदि मेरे अन्य ब्लॉग .." हिन्दी हिन्दू हिंदुस्तान " ( http://hindihindoohindustaan.blogspot.com ) पर क्रमिक रूप में प्रकाशित की जायंगी ... ....
कृति--- ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा में विभिन्न काव्यविधाओं की रचनाओं का संग्रह )
रचयिता ---डा श्याम गुप्त
--- श्रीमती सुषमा गुप्ता
भाव मंजरी ( अनुक्रमणिका)
यहाँ प्रस्तुत है एक गीत ......नव बसंत आये .....
सखी री !, नव बसंत आये |"
जन-जन में ,
जन जन, मन मन में ,
जौवनु जौवनु छाये |....................सखी री ....||
पुलकि पुलकि सब अंग सखी
री ,
हियरा उठे उमंग |
आये ऋतुपति पुहुप बान ले ,
आये रति-पति काम बान ले,
मनमथ छायो अंग |
होय कुसुमसर घायल जियरा
अँग अंग रस भरि लाये |............. सखी री ....||
तन मन में बिजुरी की थिरकन
बाजे ताल मृदंग ,
अंचरा खोले रे भेद जिया के ,
जौबन उठे तरंग |
गलियन गलियन झांझर बाजे ,
अंग अंग हरसाए |
काम -शास्त्र का पाठ पढ़ाने
ऋषि अनंग आये |
सखी री नव-बसंत आये ....||
आगे अन्य रचनाएँ -----हिन्दी हिन्दू हिंदुस्तान " ( http://hindihindoohindustaan.blogspot.com )पर पढ़ें ...
मेरे शीघ्र प्रकाश्य ब्रजभाषा काव्य संग्रह ..." ब्रज बांसुरी " ...की ब्रजभाषा में रचनाएँ गीत, ग़ज़ल, पद, दोहे, घनाक्षरी, सवैया, श्याम -सवैया, पंचक सवैया, छप्पय, कुण्डलियाँ, अगीत, नव गीत आदि मेरे अन्य ब्लॉग .." हिन्दी हिन्दू हिंदुस्तान " ( http://hindihindoohindustaan.blogspot.com ) पर क्रमिक रूप में प्रकाशित की जायंगी ... ....
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सखी री !, नव बसंत आये |"
जन-जन में ,
जन जन, मन मन में ,
जौवनु जौवनु छाये |....................सखी री ....||
पुलकि पुलकि सब अंग सखी
री ,
हियरा उठे उमंग |
आये ऋतुपति पुहुप बान ले ,
आये रति-पति काम बान ले,
मनमथ छायो अंग |
होय कुसुमसर घायल जियरा
अँग अंग रस भरि लाये |............. सखी री ....||
तन मन में बिजुरी की थिरकन
बाजे ताल मृदंग ,
अंचरा खोले रे भेद जिया के ,
जौबन उठे तरंग |
गलियन गलियन झांझर बाजे ,
अंग अंग हरसाए |
काम -शास्त्र का पाठ पढ़ाने
ऋषि अनंग आये |
सखी री नव-बसंत आये ....||
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6 टिप्पणियां:
गुप्तजी, मेरी कृति -झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (ट) ‘मानवीय पशुता’(६)काम नाट्य |पर ३०-०४१३ को प्रकाशित टिप्पणी द्वारा आप के विचार-
" वे इसलिए नंगे थे कि सिर्फ लंगोटी उपलब्ध थी, ये इसलिए नंगीं हैं कि हीरे लगी लंगोटियां खरीद अकें .." बहुत ही सटीक और अच्छे लगे \१ मई से कम्प्यूटर की समस्या से आज मुक्त हो कर पुन: आप के बीच में हूँ !
मित्रवर गुप्तजी,शुभ दिवस!
झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (ट) ‘मानवीय पशुता’ | (६)काम नाट्य |---- पर ३०-०४-१३ को की गयी टिप्पणी बहुत पसंद आई |"--वे इसलिए नंगे थे कि सिर्फ लंगोटी उपलब्ध थी, ये इसलिए नंगीं हैं कि हीरे लगी लंगोटियां खरीद अकें .."
०१ मई से कम्प्युटर की समस्या से आज मुक्ति पा कर पुन; आपके बीच हूँ !
आप की रचनाएँ दमदार नए परिवेश में तथा समाजोपयोगी हैं
धन्यवाद प्रसून जी ...आभार
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार ७/५ १३ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका वहां स्वागत है ।
धन्यवाद राजेश जी....
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