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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

शुक्रवार, 7 जून 2013

" कुछ शायरी की बात होजाए"...से नज्म-३ .. ऐतवार न कर ..... डा श्याम गुप्त .

                                   ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...

                                    
                                

                              

                                 
                                   मेरी शीघ्र प्रकाश्य शायरी संग्रह....." कुछ शायरी की बात होजाए ".... से  ग़ज़ल, नज्में  , रुबाइयां, कते, शेर  आदि  इस ब्लॉग पर प्रकाशित किये जायंगे ......प्रस्तुत है......कुछ नज्में... नज़्म ३...\

           ऐतवार न कर ...




ए मेरे दिल तू यूंही गैर पे ऐतवार न कर |
प्यार को समझे न जो, तू उसे प्यार न कर ||....ऐ मेरे दिल....
गैर तो गैर हैं अपनों का भी एतवार कहाँ ,
ढूँढता क्या है जहां में अब एतवार कहाँ |
अपने एतवार पे भी, ऐ दिल ऐतवार न कर ,
इश्क को समझे न वो, इश्के इजहार न कर ||  ...ऐ मेरे दिल...
उनपे ऐतवार किया उनका करम देख लिया ,
इश्के इज़हार किया, इश्के भरम देख लिया |
श्याम’ तू एसी खता ,अब तो हर बार न कर ,
प्यार को समझे न वो, इश्के इकरार  न कर ||  ...ऐ मेरे दिल ...

इश्के इकरार या इनकार खुदा की रहमत,
कैसे कह दूं कि खुदा पे भी तू एतवार न कर || 
 ए मेरे दिल तू यूंही गैर पे ऐतवार न कर |
प्यार को समझे न जो, इश्के-इज़हार न कर |.... ए मेरे दिल ....


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