....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
गमे-दिल को यूंही गले लगाता चल |
दर्दे-दिल के गीत यूंही गाता चल |
दर्द के नग्मे तूने सदा ही गाये हैं,
दर्द पाया है तो सीने में सजाता चल |
कौन एसा जिसे दर्दे-जिगर मिलता नहीं,
दिल को जो भाया उसे दिल में बसाता चल |
दर्द है दोस्त इंसा का इश्के-तूफां में,
दर्द पीकर भी दुनिया को हंसाता चल |
उनकी नेमत है सीने में सजाये रख श्याम ,
जाम अश्कों के पिए जश्न मनाता चल |
गमे-दिल को यूंही गले लगाता चल |
दर्दे-दिल के गीत यूंही गाता चल |
दर्द के नग्मे तूने सदा ही गाये हैं,
दर्द पाया है तो सीने में सजाता चल |
कौन एसा जिसे दर्दे-जिगर मिलता नहीं,
दिल को जो भाया उसे दिल में बसाता चल |
दर्द है दोस्त इंसा का इश्के-तूफां में,
दर्द पीकर भी दुनिया को हंसाता चल |
उनकी नेमत है सीने में सजाये रख श्याम ,
जाम अश्कों के पिए जश्न मनाता चल |
4 टिप्पणियां:
मन भरा उन्मुक्तता से
क्या बात है पांडे जी.....
मन भरा उन्मुक्तता से मस्ती में गाता चल |
bakwaas kahoon yaa achcha kahoon...
samajh na aaye kya kahoon
----jo ji main aaye kahiye......huzoor..ashok ji......
जाकी रही भावना जैसी
प्रभु मूरत देखी सो तैसी |
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